Friday, March 11, 2011

न्याय की देवी


तुम बैठती क्यों नहीं हो न्याय की देवी!
मैं देख रहा हूँ तुम्हारे हाथ में थमा हुआ तराजू
तुम्हें पीड़ा पहुँचा रहा है
तुम्हारे चेहरे पर स्पष्ट झलकती है थकन
फिर भी तुम बैठना क्यों नहीं चाहती
आखिर क्या विवशता है

इस देश का हर संवेदनशील आदमी
यहाँ रहते हुए शर्मिंदा होने को विवश है
आखिर तुम क्यों नहीं शर्मिदा हो पा रही हो

माना कि तुम्हारी आँख पर बाँध दी गई है पट्टी
लेकिन तुम्हारे कान तो खुले हुए हैं
जिनमें हत्या, बलात्कार और आगजनी से पीड़ितों की चीखें
कराहें और सिसकियाँ तो पड़ती होंगी
याकि तुम भी यह मान चुकी हो कि यह सब होने के लिए है

न्याय की देवी!
गाँधारी ने भी बाँध ली थी पट्टी
अंधे पति की विवशता से घबराकर
या अपने पुत्रों के अन्याय से आँख बचाने हेतु
जिन पर इतनी ममता थी गाँधारी को
कि अन्याय के प्रतीक पुत्र को वज्र-सी काया दे दी


लोग तुम्हें एक औरत की तरह संवेदनशील मानते हैं
और तुम मुट्ठी भर लोगों के हाथ का खिलौना हो
यह किसकी त्रासदी है

इस सदी के बीतने से पहले ही ओरत ने
अपनी मुक्‌ति की घोषणा कर दी है
वह उन विशेषणों को नोच कर फेंक रही है
जो उसके स्त्रीपन को हरने के औजार थे
उसने यह सच मान लिया
कि सृजन से पहले
अभी बहुत कुछ ध्वस्त करना ज़रूरी है
लेकिन तुम इतनी जड़ हो चुकी हो कि अपनी आँख की
पट्टी तक खोलने को अशक्त हो

क्या तुम देखना नहीं चाहती हो न्याय की देवी!
कि न्यायमूर्ति से लेकर सिपाही तक
हर तरह का जरायमपेशा फ़र्ज़ के नाम पर करते जा रहे हैं
वे जनाते हैं कि कौन डाकू है
किसने किया बलात्कार और कौन जेब काट रहा है सरेआम
वे सबकुछ देख रहे हैं
कौन किसकी हत्या कर रहा है
और कौन रास्ता बताने के नाम पर आँखों में धूल झोंक रहा है
तुम्हारी तरह उनकी आँखों पर पट्टी नहीं बँधी है
बल्कि कइयों ने पावर के चश्मे तक लगा रखे हैं
फिर भी वे तुम्हारे अंधेपन का सहारा लेकर
सबूत जुटाने का ढोंग कर रहे हैं

क्या मतलब है!
उनके सबकुछ जानते हुए अनजान बने रहने का
और तुम्हारा आँख पर पट्टी बाँधे खड़ी रहने का

वे भी सबकुछ जानते थे
जिन्होंने यह संविधान बनाया जिसकी ओट में तुम खड़ी हो
कि अस्सी फ़ीसदी हिन्दुस्तान बड़ा गरीब देश है
और उसके पास रोटी, रोशनी और रिहायश नहीं है
जिसे पाने में बीस फ़ीसदी हिन्दुस्तान बाधा की तरह
खड़ा रहेगा उसके सामने
अब न्याय और आदमियत का यही तकाज़ा है कि
बीस हिन्दुस्तान का अस्तित्व मिटा दिया जाय
निकाल दिया जाय जैसे कैंसरग्रस्त हिस्सों को निकाला जाता है शरीर से
ताकि एक पूरा हिन्दुस्तान बन सके

लेकिन उन्होंने अस्सी फ़ीसदी हिन्दुस्तान को
कुत्ता बनाकर रखने के कायदे रचे
ऐसे बंदोबस्त किए कि अस्सी फीसदी हिन्दुस्तान
की रीढ़ दुहरी रहे हमेशा
और बीस फ़ीसदी की ख़ुशहाली के पौधे लगाये उन्होंने
उन्होंने बीस फीसदी लोगों को अधिकार दिया कि वे
अस्सी फ़ीसदी हिन्दुस्तान पर गोलियाँ चला सकते हैं
उन्होंने ही तुम्हारी आँख पर पट्टी बाँधकर
बीस फ़ीसदी हिन्दुस्तान की सेवा में सौंप दिया था

न्याय की देवी!
स्त्रियाँ अब जाग रही हैं
मुक्ति के गीतों में सुरे-बेसुरे ढंग से शामिल हो रही हैं वें
जान गई हैं वें कि
सृजन से पहले बहुत कुछ ध्वस्त करना है ज़रूरी
कि सुरों की तराश से ज्यादा ज़रूरी है गले की ताक़त
दिलों का दर्द, नारों की समझ
और उठने, चलने की बेचैनी
तब तुम्हारी ओर निगाहें उठना स्वभाविक है

न्याय की देवी!
कुछ कहना पड़ेगा तुम्हें अब
वरना दो स्तनों और एक योनि लेकर पैदा हुई
जीवन भर लुटेरों और आदमखोरों के हाथों प्रताड़ित
स्त्री के नाम पर कलंक मानी जाओगी तुम।

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