Friday, June 3, 2011

तुम्हारे प्रेम में गणित था



वह जो प्रेम था
शतरंज की बिसात की तरह बिछा था हमारे बीच
तुमने चले दाँव-पेच
और मैंने बस ये
कि इस खेल में उलझे रहो तुम मेरे साथ

तुम्हारे प्रेम में गणित था
कितनी देर और...?
मेरे गणित में प्रेम था
बस एक और.. दो और...

वह जो पहाड़ था
हमारे बीच
मैंने सोचा
वह एक मौका था
तय कर सकते थे हम उसकी ऊँचाइयाँ
साथ-साथ हाथ थाम कर
एक निर्णय था हमें साथ बाँधने का
तुम्हें लगा वह अवरोध है मात्र
और उसको उखाड़ फेंकना ही एकमात्र विकल्प था
और
एक नपुंसक युग ख़त्म हो गया उसे हटाने में
हाथ बिना हरकत बर्फ बन गए चुपचाप

वह जो दर्द था हमारे बीच
रेल की पटरियों की तरह जुदा रहने का
मैंने माना उसे
मोक्ष का द्वार जहाँ अलिप्त होने की पूरी सम्भावनाये मौजूद थीं
और तुमने
एक समानान्तर जीवन
बस एक दूरी भोगने और जानने के बीच
जिसके पटे बिना संभव न था प्रेम

वह जो देह का व्यापार था हमारे बीच
मैंने माना
वह एक उड़नखटोला था
जादू था
जो तुम्हें मुझ तक और मुझे तुम तक पहुँचा सकता था
तुमने माना लेन-देन
देह एक औज़ार
उस औजार से तराशी हुई एक व्यभिचारी भयंकर मादा
जो
शराबी की तरह धुत हो जाए और
अगली सुबह उसे कुछ याद न रहे
या फिर एक दोमट मिट्टी जो मात्र उपकरण हो एक नई फसल उगाने का

शायद तुम्हारा प्रेम दैहिक प्रेम था
जो देह के साथ इस जन्म में ख़त्म हो जाएगा
और मेरा एक कल्पना
जो अपने डैने फैलाकर अँधेरी गुफा में मापता रहेगा अज्ञात आकाश
और नींद में बढ़ेगा अन्तरिक्ष तक
मस्तिष्क की स्मृति में अक्षुण रहेगा मृत्यु के बाद भी
और सूक्ष्म शरीर ढोकर ले जाएगा उसे कई जन्मों तक
मैंने शायद तुमसे सपने में प्रेम किया था
अगले जन्म में
मैं तुमसे फिर मिलूँगी
किसी खेल में
या व्यापार में
तब होगा प्रेम का हिसाब
मैं गणित सीख लूँगी तब तक।
- लीना मल्होत्रा

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