देह व्यापार    को बाकायदा एक    पेशे के तौर पर    कानूनी    मान्यता    दिलाने की तरफ    कदम बढ़ाते    हुए सुप्रीम    कोर्ट ने    केंद्र सरकार,    राज्य    सरकारों और    केंद्र शासित    प्रदेशों की    सरकारों को    निर्देश दिया    है कि व्यापक    सर्वे कराकर    यह पता करें कि    देह व्यापर से    जुड़ी    महिलाओं में    कितनी    पुनर्वास    चाहती हैं।    सुप्रीम    कोर्ट ने कहा    कि सम्मान के    साथ जीना    संवैधानिक    अधिकार है और    यह सबके लिए    है।    
जस्टिस    मार्कंडेय    काटजू और    जस्टिस ज्ञान    सुधा मिश्रा    की खंडपीठ ने    अपने आदेश    केंद्र व    राज्य सरकार    को यह भी    निर्देश दिया    है कि वह देह    व्यापार में    शामिल लोगों    के हालात में    सुधार के लिए    अपने सुझाव व    सिफारिश भी    अदालत के    सामने पेश    करें।    
माना    जा रहा है कि    सुप्रीम    कोर्ट के इस    कदम देह    व्यापार को    बतौर पेशा    मानूनी    मान्यता    दिलाने का    रास्ता साफ    करेगा।    हालांकि आज भी    देह व्यापार    अपने आप में    गैरकानूनी    नहीं है, लेकिन    इमोरल    ट्रैफिक    (प्रवेंशन)    एक्ट 1956 देह    व्यापार से    जुड़ी कुछ    गतिविधियों    को गैरकानूनी    बताता है। इसे    पेशे के तौर पर    मान्यता देने    वाले किसी    कानून के अभाव    में सेक्स    वर्कर्स को    पुलिस के    हाथों अक्सर    परेशानियां    झेलनी पड़ती    हैं।    
जस्टिस    मार्कंडेय    काट्जू ने इस    मामले में    अदालत के दखल    का बचाव करते    हुए कहा कि    अदालत ने जीने    के अधिकार    (जिसे कई    फैसलों में    गरिमा के साथ    जीने के    अधिकार के रूप    में    व्याख्यायित    किया जा चुका    है) का पालन    सुनिश्चित    कराने के लिए    यह कवायद शुरू    की    है।    
अदालत    ने सरकारों को    निर्देश दिया    है कि वह दो    हफ्ते के भीतर    इस बाबत    हलफनामा दायर    करें। अदालत    ने पुनर्वास    के काम पर    निगरानी और    अदालत की    सहायता के लिए    एक समिति का भी    गठन किया है।        
इस समिति    में एनजीओ और    वकील होंगे।    अदालत ने कहा    कि सम्मान के    साथ जीना संभव    तभी हो सकता    है, जब लोग    अपनी    योग्यताओं के    माध्यम से    जीवन जी सकें।    अदालत ने कहा    कि इसी कारण    राज्यों व    केंद्र सरकार    से देह    व्यापार में    लिप्त लोगों    को तकनीकी    प्रशिक्षण    देने के लिए    योजनाओं के    बारे में    सुझाव देने को    कहा गया है।
-नवभारत टाइम्स से साभार  
Tuesday, July 19, 2011
Sunday, July 17, 2011
तीन सौ राजनीतिक दलों ने कभी दाखिल नहीं किए आयकर रिटर्न
देश के तीन सौ राजनीतिक दलों ने आज तक कभी आयकर रिटर्न दाखिल ही नहीं  किया है। यह बात आयकर विभाग की जांच में सामने आई है। चुनाव आयोग ने अब  आयकर विभाग को उन्हें नोटिस जारी करने को कहा है। आयोग ने केंद्रीय  प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी] को आयकर और मनी लांड्रिंग कानूनों के कथित  उल्लंघन के मामले में इन राजनीतिक दलों की वित्तीय स्थिति का पता लगाने के  लिए कहा था। आयकर विभाग ने आयोग को जांच रिपोर्ट सौंप दी है।  
सीबीडीटी की आकलन शाखा द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राजनीतिक पार्टियों के पास परमानेंट अकाउंट नंबर [पैन] भी नहीं है। चुनाव आयोग ने इस साल की शुरुआत में जांच के लिए सीबीडीटी के पास संदिग्ध राजनीतिक दलों की सूची भेजी थी। आरोप लगाया गया था कि लोग कर के भुगतान से बचने के लिए बड़ी संख्या में इस प्रकार की राजनीतिक पार्टियों का संचालन कर रहे हैं क्योंकि इन पार्टियों को दिया गया दान आयकर भुगतान के दायरे से बाहर है।
चुनाव आयोग ने आयकर विभाग को आयकर अधिनियम के नवीनतम प्रावधानों के तहत इन छोटे राजनीतिक दलों के खिलाफ जांच तेज करने और कारण बताओ नोटिस जारी करने को कहा है। साथ ही आयोग ने विभाग को इनके द्वारा जुटाई की गई धनराशि के स्रोतों और खर्च के विवरण का भी पता लगाने के लिए कहा है। रिपोर्ट में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों समेत कुल 13 राज्यों की छोटी राजनीतिक पार्टियों के आयकर रिटर्न की जांच का उल्लेख है। इस जांच अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि शेष राज्यों के इस तहत के राजनीतिक दलों की स्थिति का ब्योरा जल्द ही चुनाव आयोग को मुहैया करा दिया जाएगा। आयकर विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट में इन राजनीतिक पार्टियों को 20 हजार से अधिक रुपये के दाताओं का भी पता लगाया है। चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों की संख्या 1200 के करीब है। मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई कुरैशी ने पूर्व में कहा था कि पंजीकृत राजनीतिक दलों में 75 से 80 फीसदी ने बीते कई सालों से किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया है। - साभार दैनिक जागरण
सीबीडीटी की आकलन शाखा द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राजनीतिक पार्टियों के पास परमानेंट अकाउंट नंबर [पैन] भी नहीं है। चुनाव आयोग ने इस साल की शुरुआत में जांच के लिए सीबीडीटी के पास संदिग्ध राजनीतिक दलों की सूची भेजी थी। आरोप लगाया गया था कि लोग कर के भुगतान से बचने के लिए बड़ी संख्या में इस प्रकार की राजनीतिक पार्टियों का संचालन कर रहे हैं क्योंकि इन पार्टियों को दिया गया दान आयकर भुगतान के दायरे से बाहर है।
चुनाव आयोग ने आयकर विभाग को आयकर अधिनियम के नवीनतम प्रावधानों के तहत इन छोटे राजनीतिक दलों के खिलाफ जांच तेज करने और कारण बताओ नोटिस जारी करने को कहा है। साथ ही आयोग ने विभाग को इनके द्वारा जुटाई की गई धनराशि के स्रोतों और खर्च के विवरण का भी पता लगाने के लिए कहा है। रिपोर्ट में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों समेत कुल 13 राज्यों की छोटी राजनीतिक पार्टियों के आयकर रिटर्न की जांच का उल्लेख है। इस जांच अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि शेष राज्यों के इस तहत के राजनीतिक दलों की स्थिति का ब्योरा जल्द ही चुनाव आयोग को मुहैया करा दिया जाएगा। आयकर विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट में इन राजनीतिक पार्टियों को 20 हजार से अधिक रुपये के दाताओं का भी पता लगाया है। चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों की संख्या 1200 के करीब है। मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई कुरैशी ने पूर्व में कहा था कि पंजीकृत राजनीतिक दलों में 75 से 80 फीसदी ने बीते कई सालों से किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया है। - साभार दैनिक जागरण
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