Monday, January 16, 2012

प्रेम की विवशता ....................


http://www.osho.com/GeneralPicture/Spacer.gif
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जब भी तुम किसी को प्रेम करते हो तो तुम स्वयं को पूर्ण रूप से विवश पाते हो। प्रेम की यही पीड़ा है : व्यक्ति महसूस ही नहीं कर पाता कि वह क्या कर सकता है। तुम सब कुछ करना चाहते हो, तुम अपने प्रेमी या प्रेमिका को पूरा ब्रह्मांड देना चाहते हो,लेकिन तुम क्या कर पाते हो? यदि तुम यह निश्चय कर पाते हो कि तुम यह या वह कर सकते हो तो अभी प्रेम संबंध निर्मित नहीं हुआ। प्रेम बहुत विवश होता है, पूर्ण रुप से विवश, और यह विवशता ही इसकी खूबसूरती है, क्योंकि इस विवशता में तुम समर्पण कर पाते हो।

तुम किसी को प्रेम करो तो तुम स्वयं को असहाय पाते हो, किसी को घृणा करो तो तुम कुछ कर पाते हो। किसी को प्रेम करो तो तुम स्वयं को पूर्ण रूप से विवश पाते हो, क्योंकि तुम क्या कर सकते हो? जो भी तुम कर सकते हो वह तुम्हें तुच्छ और अर्थहीन लगता है; यह कभी भी काफी नहीं लगता। कुछ भी नहीं किया जा सकता, और जब व्यक्ति को यह एहसास होता है कि कुछ भी नहीं किया जा सकता तो उसे यह महसूस होता है कि वह विवश है। जब व्यक्ति सब कुछ करना चाहता है और उसे एहसास होता है कि कुछ भी नहीं किया जा सकता तो मन थम जाता है। इस विवशता में समर्पण घटता है। तुम खाली हो जाते हो। यही कारण है कि प्रेम गहरा ध्यान बन जाता है।
दि बुक ऑव सीक्रेट्स





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