Saturday, November 3, 2012

हमले से बढ़कर हिफाज़त की कोई रणनीति नहीं है....



गोविंद निहलानी की फिल्म ‘’पार्टी’’ से कुछ कवितायें

1.    
भींचे हुए जबड़े दर्द कर रहे हैं
कितनी देर तक दबाया जा सकता है
अंदर खौलते लावे को ?
किसी भी पल खोपड़ी क्रेटर में बदल जाए
उससे पहले जानलेवा ऐंठन को
लोमड़ी की पूंछ से बांधकर दाग देना होगा
हमले से बढ़कर हिफाज़त की कोई रणनीति नहीं है 

बेकार है ए सवाल की संगीन किस कारखाने में ढली है
फर्क पड़ता है सिर्फ इस बात से कौन सा हाथ उसे थामे है
और किसका सीना उसकी नोंक पर है
फर्क तो पड़ता है इस बात से की उस जादूनगरी पर किसका कब्जा है
जहां रात –दिन पसीने की बूंदों से मोतियों की फसल उगाई जाती है

मानवता के धर्मपिता
न्याय और सत्य का मंत्रालय कम्प्युटर को सौपकर आश्वस्त है
वही निर्णय देगा
निहत्थी बस्तियों पर गिराए गए टनों नापाम बम
या तानाशाह की बुलेटप्रूफ कार पर फेंका गया इकलौता हथगोला
इंसानियत के खिलाफ कौन सा जुर्म संगीनतर है?
दरअसल
इंसाफ और सच्चाई में इंसानी दखल से संगीन जुर्म कोई नहीं है

ताकत
ताकत बंदूक की फौलादी नली से निकलती है या
कविता की कागजी कारतूस से
जिसके कोश में कहने का अर्थ है होना
और होने की शर्त लड़ना
उसके लिए शब्द किसी भी ब्रह्म से बड़ा है
जो उसके साथ हर मोर्चे पर खड़ा है
खतरनाक यात्रा के अपने आकर्षण है
आकर्षक यात्रा के अपने खतरे
इन्ही खतरों की सरगम से दोस्त
निर्मित करना है हमें दोधारी तलवार जैसा अपना संगीत

भींचे हुए जबड़े अब दर्द कर रहे हैं
कब तक दबाओगे खौलते लावे को ?

                                         2.
गंध की एक नहर तुमसे मुझ तक बहती है
कितना कुछ अनचिन्हा,कितना कुछ अनकहा
एक विश्व संवेदनाओं का बहाल आती है
तुमसे मुझ तक,मुझसे तुम तक

हाँ ......
मुझसे तुम तक अविराम बहती है एक नहर गंध की
यही शायद यही संगति है उस संबंध की
जिसे अर्थ देने को दर्पण पर झुकी लड़की
घंटों परेशान रहती है

गंध की एक लहर तैरकर न सही मैं
मेरा गीत आ सकता है
स्पर्श तुम्हारे एकांत का पा सकता है
यही हाँ यही परिणति है इस संबंध की
बहती है तुमसे मुझ तक एक नहर गंध की .........

3.
धधकते हृदय से लिखा हुआ गीत
हृदय को सुलगाएगा,जलाएगा
दहकती भट्ठी से निकला हुआ अंगार
बर्फ इतना ठंडा क्यूँ?

लिख रहा हूँ मैं गीत
परिवारियों की आँखों के सामने
बलात्कार की गई बहू- बेटियों की पीड़ से
लिख रहा हूँ मैं गीत
पेड़ से बांध कर गोली से उड़ा दिये गए
जनता के नायकों की तड़प से
जिनका गुनाह था भूख और रोटी की मांग
जिनका पाप था इंसान की तरह ज़िंदगी बसर करने की चाह
तो क्यूँ कर तुम्हारे हृदय को गुदगुदाई ये गीत
अगर बाँकी है हृदय नाम की चीज तुम्हारे पास
तो मेरा गीत उसे झकझोड़ेगा ,ठेलेगा
जिंदगी की खुरदुरा चट्टानों पर धार चढ़ाया हुआ मेरा गीत
हो ही नहीं सकता तठस्थ, नामर्द
क्यों दे वो किसी को भी पल भर का आनंद

या तो तुम मेरे हो, मेरे अपने हो या मेरे दुश्मन
क्योंकि जिस जंग के मैदान मे मैं उतरा हूँ
वहाँ मेरा गीत भी एक हथियार है ....... 
   

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