Monday, August 26, 2013

शिप ऑफ थीसियस – अनहोनी और होनी की उदास रंगीनियाँ: उदय शंकर

  
शिप ऑफ थीसियस एक ऐसी फिल्म है जिसने बॉलीवुड में विद्यमान ‘छवि-समृद्धि के स्टीरियोटाइप’ को तोड़ा है। इस लिहाज से भी यह कुछ अपवाद फिल्मों की श्रेणी में आती है। फिल्म ‘छवि-समृद्धि’ के सबसे आसान तरीके मसलन ‘स्मोक, पिस्टल और सेक्स’ से एक सचेत दूरी बनाती है। यह दूरी और कुछ नहीं बल्कि छवि-अंकन में निष्णात आनंद की एक सचेत रचनात्मक जिम्मेवारी को दिखाता है। जहां आप ‘प्रचलित जनाभिरुचियों’ को सहलाते नहीं हैं बल्कि आप उसे संशोधित-संवर्द्धित और संश्लिष्ट करते हैं। जिसके बाद आपको यह कहने की जरूरत नहीं पड़ती है कि धूम्रपान करने से कर्क रोग होता है या संभोग करने से एड्स होता है।

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