Wednesday, April 27, 2011

भविष्य की सभ्यता स्त्री के आसपास बनेगी




बुनियादी भूल जो सारी शिक्षा और सारी सभ्यता को खाए जा रही है, वह यह है कि अब तक के जीवन का सारा निर्माण पुरुष के आसपास हुआ है, स्त्री के आसपास नहीं। अब तक की सारी सभ्यता, सारी संस्कृति, सारी शिक्षा पुरुष ने निर्मित की है, पुरुष के ढंग से निर्मित हुई है, स्त्री के ढंग से नहीं।

पुरुष के जो गुण हैं, सभ्यता ने उनको ही सब कुछ मान रखा है। स्त्री की जो संभावना है, स्त्री के जो मन के भीतर छिपे हुए बीज हैं, वे जैसे विकसित हो सकते हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पुरुष बिलकुल अधूरा है, स्त्री के बिना तो बहुत अधूरा है। और पुरुष अगर अकेला ही सभ्यता को निर्मित करेगा तो वह सभ्यता भी अधूरी होगी; न केवल अधूरी होगी, बल्कि खतरनाक भी होगी।

वह खतरनाक इसलिए होगी कि पुरुष के मन की जो तीव्र आकांक्षा है वह एंबीशन है, महत्वाकांक्षा है। पुरुष के मन में प्रेम बहुत गहराई पर नहीं है, महत्वाकांक्षा! और जहां महत्वाकांक्षा है वहां ईर्ष्या होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां हिंसा होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां घृणा होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां युद्ध होगा। पुरुष का सारा चित्त एंबीशन से भरा हुआ है। स्त्री के चित्त में एंबीशन नहीं है, महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि प्रेम है। और हमारी पूरी सभ्यता प्रेम से बिलकुल शून्य है, प्रेम से बिलकुल रिक्त है, प्रेम की उसमें कोई जगह नहीं है। पुरुष ने अपने ही ढंग से पूरी बात निर्मित कर ली है। उसकी सारी शिक्षा भी उसने अपने ढंग से निर्मित कर ली है। उसने जीवन की जो संरचना की है वह अपने ही ढंग से की है। उसमें युद्ध प्रमुख है, उसमें संघर्ष प्रमुख है, उसमें तलवार प्रमुख है।

यहां तक कि अगर कोई स्त्री भी तलवार लेकर खड़ी हो जाती है तो पुरुष उसे बहुत आदर देता है। जोन ऑफ आर्क को, झांसी की रानी लक्ष्मी को पुरुष बहुत आदर देता है। इसलिए नहीं कि वे बहुत कीमती स्त्रियां थीं, बल्कि इसलिए कि वे पुरुष जैसी स्त्रियां थीं। वह उनकी मूर्तियां खड़ी करता है चौरस्तों पर। वह गीत गाता है: खूब लड़ी मर्दानी, झांसी वाली रानी थी। वह कहता है कि वह मर्दानी थी, इसलिए आदर देता है। लेकिन अगर कोई पुरुष जनाना हो तो अनादर करता है, आदर नहीं देता। स्त्री मर्दानी हो तो आदर देता है। स्त्री तलवार लेकर लड़ती हो, सैनिक बनती हो, तो पुरुष के मन में सम्मान है। पुरुष के मन में हिंसा के और महत्वाकांक्षा के अतिरिक्त किसी बात का कोई सम्मान नहीं है।

यह जो पुरुष अधूरा है, सारी शिक्षा भी उसी पुरुष के लिए निर्मित हुई है। हजारों वर्षों तक स्त्री को कोई शिक्षा नहीं दी गई। एक बड़ी भूल थी कि स्त्री अशिक्षित रह जाए। फिर कुछ वर्षों से स्त्री को शिक्षा दी जा रही है। और अब दूसरी भूल की जा रही है कि स्त्री को पुरुषों जैसी शिक्षा दी जा रही है। यह अशिक्षित स्त्री से भी खतरनाक स्त्री को पैदा करेगी। अशिक्षित स्त्री कम से कम स्त्री थी। शिक्षित स्त्री पुरुष के ज्यादा करीब आ जाती है, स्त्री कम रह जाती है। क्योंकि जिस शिक्षा से गुजरती है उसका मौलिक निर्माण पुरुष के लिए हुआ है। एक ऐसी स्त्री पैदा हो रही है सारी दुनिया में, जो अगर सौ दो सौ वर्ष इसी तरह की शिक्षा चलती रही तो अपने समस्त स्त्री-धर्म को खो देगी। उसके जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, उसकी प्रतिभा में जो भी कीमती है, उसके स्वभाव में जो भी सत्य है, वह सब विनष्ट हो जाएगा।

स्त्री शिक्षित होनी चाहिए। लेकिन उस तरह की शिक्षा में नहीं जो पुरुष की है। स्त्री के लिए ठीक स्त्री जैसी शिक्षा विकसित होनी जरूरी है। यह हमारे ध्यान में नहीं है और अभी मनुष्य-जाति के किन्हीं विचारकों के ध्यान में बहुत स्पष्ट नहीं है कि नारी की शिक्षा पुरुष से बिलकुल ही भिन्न शिक्षा होगी।

नारी भिन्न है।

मैं आपको यह कहना चाहता हूं, स्त्री और पुरुष समान आदर के पात्र हैं, लेकिन समान बिलकुल भी नहीं हैं, बिलकुल असमान हैं। स्त्री स्त्री है, पुरुष पुरुष है। और उन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क को अगर ध्यान में न रखा जाए तो जो भी शिक्षा होगी वह स्त्री के लिए बहुत आत्मघाती होने वाली है। वह स्त्री को नष्ट करने वाली होगी। स्त्री और पुरुष मौलिक रूप से भिन्न हैं। और उनकी यह जो मौलिक भिन्नता है, यह जो पोलेरिटी है, जैसे उत्तर और दक्षिण ध्रुव भिन्न हैं, जैसे बिजली के निगेटिव और पाजिटिव पोल भिन्न हैं, यह जो इतनी पोलेरिटी है, इतनी भिन्नता है, इसी की वजह से उनके बीच इतना आकर्षण है। इसी के कारण वे एक-दूसरे के सहयोगी और साथी और मित्र बन पाते हैं। यह असमानता जितनी कम होगी, यह भिन्नता जितनी कम होगी, यह दूरी जितनी कम होगी, उतना ही खतरनाक है मनुष्य के लिए।

मेरी दृष्टि में, स्त्रियों को पुरुषों जैसा बनाने वाली शिक्षा, सारी दुनिया में हर, एक-एक बच्चे तक पहुंचाई जा रही है। पुरुष तो पहले से ही विक्षिप्त सभ्यता को जन्म दिया है। एक आशा है कि स्त्री एक नई सभ्यता की उन्नायक बने। लेकिन वह आशा भी समाप्त हो जाएगी अगर स्त्री भी पुरुष की भांति दीक्षित हो जाती है।

मेरी दृष्टि में, स्त्री को गणित की नहीं, संगीत की और काव्य की शिक्षा ही उपयोगी है। उसे इंजीनियर बनाने की कोई भी जरूरत नहीं। इंजीनियर वैसे ही जरूरत से ज्यादा हैं। पुरुष पर्याप्त हैं इंजीनियर होने को। स्त्री को कुछ और होने की जरूरत है। क्योंकि अकेले इंजीनियरों से और अकेले गणितज्ञों से जीवन समृद्ध नहीं होता। उनकी जरूरत है, उनकी उपयोगिता है। लेकिन वे ही जीवन के लिए पर्याप्त नहीं हैं। जीवन की खुशी किन्हीं और बातों पर निर्भर करती है। बड़े से बड़ा इंजीनियर और बड़े से बड़ा गणितज्ञ भी जीवन में उतनी खुशी नहीं जोड़ पाता जितना गांव में एक बांसुरी बजाने वाला जोड़ देता है।

मनुष्य-जाति की खुशी बढ़ाने वाले लोग, मनुष्य के जीवन में आनंद के फूल खिलाने वाले लोग वे नहीं हैं जो प्रयोगशालाओं में जीवन भर प्रयोग ही करते रहते हैं। उनसे भी ज्यादा वे लोग हैं जो जीवन के गीत गाते हैं और जीवन के काव्य को अवतरित करते हैं।

मनुष्य जीता किसलिए है? काम के लिए? फैक्ट्री चलाने के लिए? रास्ते बनाने के लिए? मनुष्य रास्ते बनाता है, फैक्ट्री भी चलाता है, दुकान भी चलाता है, इसलिए कि इन सब से एक व्यवस्था बन सके और उस व्यवस्था में वह आनंद, शांति और प्रेम को पा सके। वह जीता हमेशा प्रेम और आनंद के लिए है। लेकिन कई बार ऐसा हो जाता है कि साधनों की चेष्टा में हम इतने संलग्न हो जाते हैं कि साध्य ही भूल जाता है।

मेरी दृष्टि में, पुरुष की सारी शिक्षा साधन की शिक्षा है। स्त्री की सारी शिक्षा साध्य की शिक्षा होनी चाहिए, साधन की नहीं। ताकि वह पुरुष के अधूरेपन को पूरा कर सके। वह पुरुष के लिए परिपूरक हो सके। वह पुरुष के जीवन में जो अधूरापन है, जो कमी है, उसे भर सके। पुरुष फैक्ट्रियां खड़ी कर लेगा, बगीचे कौन लगाएगा? पुरुष बड़े मकान खड़े कर लेगा, लेकिन उन मकानों में गीत कौन गुंजाएगा? पुरुष एक दुनिया बना लेगा जो मशीनों की होगी, लेकिन उन मशीनों के बीच फूलों की जगह कौन बनाएगा?

स्त्री के व्यक्तित्व के प्रेम को कितना गहरा कर सके, ऐसी शिक्षा चाहिए। ऐसी शिक्षा चाहिए जो उसके जीवन को और भी सृजनात्मक प्रेम की तरफ ले जा सके।

ओशो

Sunday, April 24, 2011

सभी धर्म कामवासना के विरोध में क्यों हैं?






यह जीवन के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, क्योंकि यह मूल जीवन-ऊर्जा से संबंधित है। कामवासना...यह शब्द ही अत्यंत निंदित हो गया है। क्योंकि समस्त धर्म उन सब चीजों के दुश्मन हैं, जिनसे मनुष्य आनंदित हो सकता है, इसलिए काम इतना निंदित किया गया है। उनका न्यस्त स्वार्थ इसमें था कि लोग दुखी रहें, उन्हें किसी तरह की शांति, थोड़ी सी भी सांत्वना, और इस रूखे-सूखे मरुस्थल में क्षण भर को भी मरूद्यान की हरियाली पाने की संभावना शेष न रहे। धर्मों के लिए यह परम आवश्यक था कि मनुष्य के सुखी होने की पूरी संभावना नष्ट कर दी जाए।

यह उनके लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों था? यह महत्वपूर्ण था क्योंकि वे तुम्हें, तुम्हारे मन को किसी और दिशा में मोड़ना चाहते थे-परलोक की ओर। यदि तुम सच में ही यहां आनंदित हो-इसी लोक में, तो भला तुम क्यों किसी परलोक की चिंता करोगे? परलोक के अस्तित्व के लिए तुम्हारा दुखी होना अत्यंत आवश्यक है। उसका स्वयं अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं है, उसका अस्तित्व है तुम्हारे दुख में, तुम्हारी पीड़ा में, तुम्हारे विषाद में।

दुनिया के सारे धर्म तुम्हारे अहित करते रहे हैं। वे ईश्वर के नाम पर, सुंदर और अच्छे शब्दों की आड़ में तुममें और अधिक पीड़ा और अधिक संताप, और अधिक घृणा, और अधिक क"ोध, और अधिक घाव पैदा करते रहे हैं। वे प्रेम की बातचीत करते हैं, मगर तुम्हारे प्रेमपूर्ण हो सकने की सारी संभावनाओं को मिटा देते हैं।

मैं काम का शत्रु नहीं हूं। मेरी दृष्टि में काम उतना ही पवित्र है, जितना जीवन में शेष सब पवित्र है। असल में न कुछ पवित्र है, न कुछ अपवित्र है; जीवन एक है-सब विभाजन झूठे हैं, और काम जीवन का केंद्र बिंदु है।

इसलिए तुम्हें समझना पड़ेगा कि सदियों-सदियों से क्या होता आ रहा है। जैसे ही तुम काम को दबाते हो, तुम्हारी ऊर्जा स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए नये-नये मार्ग खोजना प्रारंभ कर देती है। ऊर्जा स्थिर नहीं रह सकती। जीवन के आधारभूत नियमों में से एक है कि ऊर्जा सदैव गत्यात्मक होती है, गतिशीलता का नाम ही ऊर्जा है। वह रुक नहीं सकती, ठहर नहीं सकती। यदि उसके साथ जबरदस्ती की गई, एक द्वार बंद किया गया, तो वह दूसरे द्वारों को खोल लेगी, लेकिन उसे बांधकर नहीं रखा जा सकता। यदि ऊर्जा का स्वाभाविक प्रवाह अवरुद्ध किया गया, तो वह किसी अप्राकृतिक मार्ग से बहने लगेगी। यही कारण है कि जिन समाजों ने काम का दमन किया, वे अधिक संपन्न और समृद्ध हो गए। जब तुम काम का दमन करते हो, तो तुम्हें अपने प्रेम-पात्र को बदलना होगा। अब स्त्री से प्रेम करना तो खतरनाक है, वह तो नरक का द्वार है। चूंकि सारे शास्त्र पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए सिर्फ स्त्री ही नरक का मार्ग है। पुरुषों के बारे में क्या खयाल है?

मैं हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों से कहता रहा हूं कि अगर स्त्री नरक का मार्ग है, तब तो फिर केवल पुरुष ही नरक जा सकते हैं, स्त्री तो जा ही नहीं सकती। मार्ग तो सदा अपनी जगह रहता है, वह तो कहीं आवागमन नहीं करता। लोग ही उस पर आवागमन करते हैं। यूं कहने को तो हम कहते हैं कि यह रास्ता फलां जगह जाता है, लेकिन इसमें भाषा की भूल है। रास्ता तो कहीं आता-जाता नहीं, अपनी जगह आराम से पड़ा रहता है, लोग ही उस पर आते-जाते हैं। यदि स्त्रियां नरक का मार्ग हैं, तब तो निश्चित ही नरक में केवल पुरुष ही पुरुष भरे होंगे। नरक “सिर्फ पुरुषों का क्लब” होगा।

स्त्री नरक का मार्ग नहीं है। लेकिन एक बार तुम्हारे दिमाग में यह गलत संस्कार बैठ जाए, तो तुम किसी और वस्तु में स्त्री को प्रक्षेपित करने लगोगे; फिर तुम्हें कोई और प्रेम-पात्र चाहिए। धन तुम्हारा प्रेम-पात्र बन सकता है। लोग पागलों की तरह धन-दौलत से चिपके हैं, जोरों से पकड़े हैं, क्यों? इतना लोभ और लालच क्यों है? क्योंकि दौलत ही उनकी प्रेमिका बन गई। उन्होंने अपनी सारी जीवन ऊर्जा धन की ओर मोड़ ली।

अब यदि कोई उनसे धन त्यागने को कहे, तो वे बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगे। फिर राजनीति से उनका प्रेम-संबंध जुड़ जाएगा। राजनीति में सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़ते जाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाएगा। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद की ओर, राजनीतिज्ञ ठीक उसी लालसा से देखता है, जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका की ओर देखता है। यह विकृति है।

कोई व्यक्ति किन्हीं और दिशाओं में जा सकता है, जैसे शिक्षा; तब पुस्तकें उसकी प्रेम की वस्तुएं हो जाती हैं। कोई आदमी धार्मिक बन सकता है, तब परमात्मा उसका प्रेम-पात्र बन जाता है...तुम अपने प्रेम को किसी भी काल्पनिक चीज पर प्रक्षेपित कर सकते हो, लेकिन स्मरण रहे, उससे तुम्हें परितृप्ति नहीं मिल सकती।   
                                 -ओशो

Saturday, April 23, 2011

एक कलाकार जब प्रेमी बनता है.......................................


 प्रश्न : एक कलाकार होने के नाते, मैं बहुत ही आसानी से अपनी भावनाओं और प्रेम को अपने कार्य में उंड़ेल देता हूं। यही अहसास अपने संगी-साथियों के साथ मैं क्यों नहीं बांट पाता? 




शिल्पकार बनना आसान है क्योंकि तुम निर्जीव वस्तुओं को देख रहे हो। तुम सुंदर मूर्ति बना सकते हो लेकिन वे मूर्तियां मृत हैं। तुम उनके साथ संबंधित नहीं हो सकते, तुम जीवंत हो। जीवन और मृत्यु के बीच संवाद संभव नहीं है।
तुम प्रशंसा कर सकते हो; तुम आनंद मना सकते हो; यह तुम्हारा सृजन है। तुम संतुष्ट हो सकते हो; जो कुछ भी तुम चाहो, करने में तुम सफल हुए। लेकिन एक बात याद रखो : दूसरी तरफ, वहां कोई नहीं है। तुम अकेले हो।
इस स्थिति के कारण, यहां ऐसे लोग हैं जो अपने कुत्तों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपने बगीचों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपनी कारों को प्रेम कर सकते हैं, वे दुनिया में मानव के अतिरिक्त हर चीज को प्रेम कर सकते हैं। क्योंकि मनुष्य का मतलब है कि तुम अकेले नहीं हो, दूसरा वहां है। वह संवाद है। मूर्ति के साथ, यह एकालाप है। मूर्ति कुछ भी कहने वाली नहीं है, वह तुम्हारी आलोचना करने वाली नहीं है, तुम्हारे ऊपर आधिपत्य जमाने वाली नहीं है। तुम मूर्ति पर आधिपत्य रखते हो; तुम उसे बाजार में बेच सकते हो। लेकिन यह तुम मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह समस्या है।

जब तुम मानव जाति से संबंधित होना शुरू करते हो, तुम्हें यह मानना होगा कि वे वस्तुएं नहीं हैं, वे चेतनाएं हैं। तुम उन पर प्रभुत्व नहीं जमा सकते...हालांकि सभी यह करने की कोशिश कर रहे हैं, और अपने सारे जीवन को नष्ट कर रहे हैं। जिस क्षण तुम किसी मानव पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते हो, तुम शत्रु पैदा करते हो, क्योंकि वह मनुष्य भी प्रभुत्व जमाना चाहता है। तुम इसे प्रेम कह सकते हो, तुम इसे दोस्ती कह सकते हो, लेकिन दोस्ती और प्रेम और भाईचारे के पर्दे के पीछे गहरे में वहां शक्ति की चाह है। तुम प्रभुत्व करना चाहते हो; तुम अधीन नहीं होना चाहते।
मनुष्यों के साथ, तुम सतत संघर्ष में होओगे। जितने करीब तुम होओगे उतना ही संघर्ष तुम्हें कष्ट देगा। यहां हजारों लोग हैं जो मनुष्यों के साथ रिश्तों के कारण इतने आहत हुए हैं कि वे मनुष्यों के साथ प्रेम, दोस्ती से दूर चले गए हैं। वे वस्तुओं की तरफ मुड़ गए हैं। यह आसान है : जो भी तुम चाहते हो वह दूसरा हमेशा करना चाहता है।
तुम कलाकार हो, तुम मूर्ति बनाते हो। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम क्या कर रहे हो? तुम संगमरमर से टुकड़े निकाल रहे हो; जो तुम मनुष्यों के साथ नहीं कर सकते, लेकिन लोग मनुष्यों के साथ भी यह कर रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों के पंख काट रहे हैं, उनकी स्वतंत्रता काट रहे हैं, उनकी निजता काट रहे हैं। प्रेमी एक-दूसरे को सतत काट रहे हैं।
मनुष्य के साथ प्रेम में होना आसान बात नहीं है। दुनिया में प्रेम संबंध सबसे कठिन है ; इसकी बस साधारण सी वजह यह है कि दो चेतनाएं, दो जीवंत मनुष्य, किसी भी तरह की गुलामी को सहन नहीं कर सकते।
जब माता-पिता अपने बच्चों को कहते हैं, "यह मत करो!' छोटे से बच्चे को भी ठेस पहुंचती है, अपमानित महसूस करता है, बेइज्जती महसूस करता है। और उसे ऐसा होगा यदि उसमें किसी प्रकार का साहस है।
तुम वस्तुओं के ऊपर, चीजों के ऊपर कार्य कर रहे हो। वे हां नहीं कह सकती, वे ना नहीं कह सकती। जो कुछ भी उनके साथ तुम करना चाहते हो, तुम कर सकते हो, लेकिन मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह तुम्हारी गलती है कि अभी भी तुम इतने प्रौढ़ नहीं हुए कि समझ पाओ कि मनुष्य के साथ, यदि तुम प्रेमपूर्ण रिश्ता चाहते हो तो तुम्हें सारी शक्ति की राजनीति को भूल जाना चाहिए। तुम बस मित्र हो सकते हो, न तो दूसरे पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते, न ही दूसरे द्वारा प्रभुत्व जमाने देना चाहते हो। यह संभव है यदि तुम्हारे जीवन में एक तरह का ध्यान हो। वर्ना, यह संभव नहीं है।
मनुष्य को प्रेम करना दुनिया में बहुत कठिन कार्य है क्योंकि जिस क्षण तुम अपना प्रेम बताना शुरू करते हो, दूसरा शक्ति की कामना करने लगेगा। वह जानता है या जानती है कि तुम उस पर आश्रित हो। तुम मनोवैज्ञानिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से गुलाम हो सकते हो और कोई भी गुलाम नहीं होना चाहता। लेकिन तुम्हारे सारे मानवीय रिश्ते गुलामी में बदल जाते हैं।
कोई भी मूर्ति तुम्हें गुलाम नहीं बनाएगी। इसके विपरीत, मूर्ति तुम्हें परम शिल्पकार बनाएगी, वह तुम्हें सृजनकार बनाएगी, कलाकार बनाएगी। वहां किसी प्रकार का द्वंद्व नहीं है। प्रेम की असली परीक्षा मनुष्यों के साथ होती है।
वह व्यक्ति सचमुच प्रतिभावान होगा यदि वह मनुष्य के साथ सहजता से रिश्ता बना सकता है। इसके लिए बहुत गहन अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है। मूर्ति बनाना या सुंदर चित्रकारी करना एक बात है; वे रंग ऐसा नहीं कहेंगे कि "मैं कैनवास के कोने में नहीं जाना चाहता, मैं बस अस्वीकार करता हूं!' जहां कहीं तुम उसे चाहते हो, रंग उपलब्ध है। लेकिन यह मनुष्य के साथ आसान नहीं है।
हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह किसी के द्वारा गुलाम नहीं बनाया जाए , लेकिन जन्म कर्तव्य भी है कि किसी के ऊपर प्रभुत्व न जमाए। और सिर्फ तब ही, मित्रता खिल सकती है।
प्रेम के पास स्पष्ट देखने की नजर होनी चाहिए। प्रेम को सब तरह की गंदगी को साफ करने की जरूरत होती है जो तुम्हारे मन में है : ईर्ष्या, क्रोध, प्रभुत्व जमाने की चाह।

मैंने सुना है...शादी के रजिस्ट्रार आफिस में, एक जोड़ा शादी के लिए आया। उन्होंने फॉर्म भरे। स्त्री ने पुरुष की तरफ देखा, वे प्रेमी थे, वे अपने परिवारों के खिलाफ रजिस्टर आफिस आए थे, क्योंकि भारत में, शादी रजिस्ट्रार के आफिस में नहीं होती है। कानूनी रूप से तुम कर सकते हो लेकिन वह तब ही होती है जब तुम परिवार के खिलाफ करते हो, समाज के खिलाफ करते हो।
वे दो लोग निश्चित ही गहरे में प्यार में रहे होंगे। उन्होंने समाज के खिलाफ, धर्म के खिलाफ, माता-पिता के खिलाफ, परिवार के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने हर चीज का जोखिम लिया और वे शादी करने ही वाले थे। स्त्री ने पुरुष की तफर देखा जो फॉर्म भर रहा था, क्योंकि उसने अपना भर लिया था; और तब अचानक उसने रजिस्ट्रार को कहा, "मैं तत्काल तलाक चाहती हूं।'
वह बोला, "क्या हुआ? तुम शादी के लिए फॉर्म भर रही हो। हनीमून भी नहीं हुआ है। सच तो यह है कि अभी शादी भी नहीं हुई है क्योंकि अभी मैंने सील नहीं लगाई है। तुम अचानक तलाक क्यों चाहती हो?'
वह बोली, "मैं इस पुरुष से नफरत करती हूं!'
रजिस्ट्रार बोला, "यह अजीब बात है! तुम इसे यहां लेकर आई हो?'
वह बोली, "हां, मैं उसे यहां लेकर आई हूं। मैं इसे प्यार किया करती थी, लेकिन जब मैंने उसका फॉर्म देखा...उसने इतने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए! वह देख रहा था जब मैं हस्ताक्षर कर रही थी। मैंने उसी तरह से हस्ताक्षर किए जैसे कि मैं हमेशा करती हूं, और इसने तीन गुना बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए; लगभग आधे फॉर्म में इसके हस्ताक्षर हैं! मैं इस आदमी के साथ जीना नहीं चाहती, इसने अपना प्रभुत्व, अपनी ताकत बता दी है।'
रजिस्ट्रार बोला, "तब किसी तलाक की जरूरत नहीं है। बस अपने फॉर्म को कचरे के डिब्बे में फेंक दो, क्योंकि अभी मैंने उन पर मुहर नहीं लगाई है, और यहां से चले जाओ।'
इतनी छोटी सी बात कि पुरुष ने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर कर दिया! लेकिन यह बड़ा प्रतीकात्मक है। यह बताता है कि वह पुरुष दंभ से भरा है।

तुम्हारे सारे जीवन के बारे में क्या है? हर बात समस्या है, हर बात में द्वंद्व है। कारण यह है कि हमने यह विचार स्वीकार लिया है कि हम जानते हैं कि प्रेम कैसे किया जाता है। हम नहीं जानते हैं। हम जानवरों से आए हैं; जानवर प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम मनुष्य जीवन में बहुत नई बात है। जानवर पैदा करते हैं लेकिन वे प्रेम नहीं करते हैं। तुम भैंसों में रोमियो और जुलियट, लैला और मजनू, शिरी और फरहाद, सोनी और महिवाल नहीं पाओगे। कोई भी भैंसें इन रोमांटिक बातों में रुचि नहीं रखती हैं; वे बड़ी व्यावहारिक होती हैं, वे प्रजनन करती हैं, और प्रकृति भैंसों के साथ पूरी तरह से संतुष्ट है, याद रखना। हो सकता है कि प्रकृति मनुष्य को नष्ट करने की कोशिश कर रही हो लेकिन भैंसों और गधों और बंदरों को नष्ट करने का प्रयास नहीं कर रही है, नहीं। वे कतई समस्या नहीं हैं।
मानव चेतना के साथ प्रेम नई घटना है जो पैदा होती है। तुम्हें इसे सीखना होगा।
सुंदर चित्र, कविता, मूर्ति, संगीत, नृत्य सृजित करो; यह सब तुम्हारे हाथ में है। लेकिन जब तुम मनुष्य के संपर्क में आते हो, तुम्हें समझना होगा कि दूसरी तरफ भी उसी तरह की चेतना है। जिस व्यक्ति को तुम प्रेम करते हो उसे सम्मान और गौरव देना होगा। यह कारण है कि तुम मनुष्य के साथ संबंधित नहीं हो सकते।
मनुष्य और प्रेम के बारे में भूल जाओ; तुम बस ध्यान करो। यह तुम्हें अंतर्दृष्टि, दर्शन, स्पष्टता और बांटने की ऊर्जा देगा।
अपनी अतिशय ऊर्जा को बांटने का नाम प्रेम है। तुम्हारे पास बहुत अधिक है, तुम उससे बोझिल हो। तुम उसे बांटना चाहते हो उन लोगों के साथ जिन्हें तुम पसंद करते हो। तुम्हारा प्रेम--जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।
तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?
तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'
लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।
प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।

मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।
सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।
शिल्पकार बनना आसान है क्योंकि तुम निर्जीव वस्तुओं को देख रहे हो। तुम सुंदर मूर्ति बना सकते हो लेकिन वे मूर्तियां मृत हैं। तुम उनके साथ संबंधित नहीं हो सकते, तुम जीवंत हो। जीवन और मृत्यु के बीच संवाद संभव नहीं है।

तुम प्रशंसा कर सकते हो; तुम आनंद मना सकते हो; यह तुम्हारा सृजन है। तुम संतुष्ट हो सकते हो; जो कुछ भी तुम चाहो, करने में तुम सफल हुए। लेकिन एक बात याद रखो : दूसरी तरफ, वहां कोई नहीं है। तुम अकेले हो।

इस स्थिति के कारण, यहां ऐसे लोग हैं जो अपने कुत्तों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपने बगीचों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपनी कारों को प्रेम कर सकते हैं, वे दुनिया में मानव के अतिरिक्त हर चीज को प्रेम कर सकते हैं। क्योंकि मनुष्य का मतलब है कि तुम अकेले नहीं हो, दूसरा वहां है। वह संवाद है। मूर्ति के साथ, यह एकालाप है। मूर्ति कुछ भी कहने वाली नहीं है, वह तुम्हारी आलोचना करने वाली नहीं है, तुम्हारे ऊपर आधिपत्य जमाने वाली नहीं है। तुम मूर्ति पर आधिपत्य रखते हो; तुम उसे बाजार में बेच सकते हो। लेकिन यह तुम मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह समस्या है।

जब तुम मानव जाति से संबंधित होना शुरू करते हो, तुम्हें यह मानना होगा कि वे वस्तुएं नहीं हैं, वे चेतनाएं हैं। तुम उन पर प्रभुत्व नहीं जमा सकते...हालांकि सभी यह करने की कोशिश कर रहे हैं, और अपने सारे जीवन को नष्ट कर रहे हैं। जिस क्षण तुम किसी मानव पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते हो, तुम शत्रु पैदा करते हो, क्योंकि वह मनुष्य भी प्रभुत्व जमाना चाहता है। तुम इसे प्रेम कह सकते हो, तुम इसे दोस्ती कह सकते हो, लेकिन दोस्ती और प्रेम और भाईचारे के पर्दे के पीछे गहरे में वहां शक्ति की चाह है। तुम प्रभुत्व करना चाहते हो; तुम अधीन नहीं होना चाहते।

मनुष्यों के साथ, तुम सतत संघर्ष में होओगे। जितने करीब तुम होओगे उतना ही संघर्ष तुम्हें कष्ट देगा। यहां हजारों लोग हैं जो मनुष्यों के साथ रिश्तों के कारण इतने आहत हुए हैं कि वे मनुष्यों के साथ प्रेम, दोस्ती से दूर चले गए हैं। वे वस्तुओं की तरफ मुड़ गए हैं। यह आसान है : जो भी तुम चाहते हो वह दूसरा हमेशा करना चाहता है।

तुम कलाकार हो, तुम मूर्ति बनाते हो। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम क्या कर रहे हो? तुम संगमरमर से टुकड़े निकाल रहे हो; जो तुम मनुष्यों के साथ नहीं कर सकते, लेकिन लोग मनुष्यों के साथ भी यह कर रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों के पंख काट रहे हैं, उनकी स्वतंत्रता काट रहे हैं, उनकी निजता काट रहे हैं। प्रेमी एक-दूसरे को सतत काट रहे

मनुष्य के साथ प्रेम में होना आसान बात नहीं है। दुनिया में प्रेम संबंध सबसे कठिन है ; इसकी बस साधारण सी वजह यह है कि दो चेतनाएं, दो जीवंत मनुष्य, किसी भी तरह की गुलामी को सहन नहीं कर सकते।

जब माता-पिता अपने बच्चों को कहते हैं, "यह मत करो!' छोटे से बच्चे को भी ठेस पहुंचती है, अपमानित महसूस करता है, बेइज्जती महसूस करता है। और उसे ऐसा होगा यदि उसमें किसी प्रकार का साहस है।

तुम वस्तुओं के ऊपर, चीजों के ऊपर कार्य कर रहे हो। वे हां नहीं कह सकती, वे ना नहीं कह सकती। जो कुछ भी उनके साथ तुम करना चाहते हो, तुम कर सकते हो, लेकिन मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह तुम्हारी गलती है कि अभी भी तुम इतने प्रौढ़ नहीं हुए कि समझ पाओ कि मनुष्य के साथ, यदि तुम प्रेमपूर्ण रिश्ता चाहते हो तो तुम्हें सारी शक्ति की राजनीति को भूल जाना चाहिए। तुम बस मित्र हो सकते हो, न तो दूसरे पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते, न ही दूसरे द्वारा प्रभुत्व जमाने देना चाहते हो। यह संभव है यदि तुम्हारे जीवन में एक तरह का ध्यान हो। वर्ना, यह संभव नहीं है।

मनुष्य को प्रेम करना दुनिया में बहुत कठिन कार्य है क्योंकि जिस क्षण तुम अपना प्रेम बताना शुरू करते हो, दूसरा शक्ति की कामना करने लगेगा। वह जानता है या जानती है कि तुम उस पर आश्रित हो। तुम मनोवैज्ञानिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से गुलाम हो सकते हो और कोई भी गुलाम नहीं होना चाहता। लेकिन तुम्हारे सारे मानवीय रिश्ते गुलामी में बदल जाते हैं।

कोई भी मूर्ति तुम्हें गुलाम नहीं बनाएगी। इसके विपरीत, मूर्ति तुम्हें परम शिल्पकार बनाएगी, वह तुम्हें सृजनकार बनाएगी, कलाकार बनाएगी। वहां किसी प्रकार का द्वंद्व नहीं है। प्रेम की असली परीक्षा मनुष्यों के साथ होती है।

वह व्यक्ति सचमुच प्रतिभावान होगा यदि वह मनुष्य के साथ सहजता से रिश्ता बना सकता है। इसके लिए बहुत गहन अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है। मूर्ति बनाना या सुंदर चित्रकारी करना एक बात है; वे रंग ऐसा नहीं कहेंगे कि "मैं कैनवास के कोने में नहीं जाना चाहता, मैं बस अस्वीकार करता हूं!' जहां कहीं तुम उसे चाहते हो, रंग उपलब्ध है। लेकिन यह मनुष्य के साथ आसान नहीं है।

हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह किसी के द्वारा गुलाम नहीं बनाया जाए , लेकिन जन्म कर्तव्य भी है कि किसी के ऊपर प्रभुत्व न जमाए। और सिर्फ तब ही, मित्रता खिल सकती है।

प्रेम के पास स्पष्ट देखने की नजर होनी चाहिए। प्रेम को सब तरह की गंदगी को साफ करने की जरूरत होती है जो तुम्हारे मन में है : ईर्ष्या, क्रोध, प्रभुत्व जमाने की चाह।

मैंने सुना है...शादी के रजिस्ट्रार आफिस में, एक जोड़ा शादी के लिए आया। उन्होंने फॉर्म भरे। स्त्री ने पुरुष की तरफ देखा, वे प्रेमी थे, वे अपने परिवारों के खिलाफ रजिस्टर आफिस आए थे, क्योंकि भारत में, शादी रजिस्ट्रार के आफिस में नहीं होती है। कानूनी रूप से तुम कर सकते हो लेकिन वह तब ही होती है जब तुम परिवार के खिलाफ करते हो, समाज के खिलाफ करते हो।

वे दो लोग निश्चित ही गहरे में प्यार में रहे होंगे। उन्होंने समाज के खिलाफ, धर्म के खिलाफ, माता-पिता के खिलाफ, परिवार के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने हर चीज का जोखिम लिया और वे शादी करने ही वाले थे। स्त्री ने पुरुष की तफर देखा जो फॉर्म भर रहा था, क्योंकि उसने अपना भर लिया था; और तब अचानक उसने रजिस्ट्रार को कहा, "मैं तत्काल तलाक चाहती हूं।'

वह बोला, "क्या हुआ? तुम शादी के लिए फॉर्म भर रही हो। हनीमून भी नहीं हुआ है। सच तो यह है कि अभी शादी भी नहीं हुई है क्योंकि अभी मैंने सील नहीं लगाई है। तुम अचानक तलाक क्यों चाहती हो?'

वह बोली, "मैं इस पुरुष से नफरत करती हूं!'

रजिस्ट्रार बोला, "यह अजीब बात है! तुम इसे यहां लेकर आई हो?'

वह बोली, "हां, मैं उसे यहां लेकर आई हूं। मैं इसे प्यार किया करती थी, लेकिन जब मैंने उसका फॉर्म देखा...उसने इतने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए! वह देख रहा था जब मैं हस्ताक्षर कर रही थी। मैंने उसी तरह से हस्ताक्षर किए जैसे कि मैं हमेशा करती हूं, और इसने तीन गुना बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए; लगभग आधे फॉर्म में इसके हस्ताक्षर हैं! मैं इस आदमी के साथ जीना नहीं चाहती, इसने अपना प्रभुत्व, अपनी ताकत बता दी है।'

रजिस्ट्रार बोला, "तब किसी तलाक की जरूरत नहीं है। बस अपने फॉर्म को कचरे के डिब्बे में फेंक दो, क्योंकि अभी मैंने उन पर मुहर नहीं लगाई है, और यहां से चले जाओ।'

इतनी छोटी सी बात कि पुरुष ने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर कर दिया! लेकिन यह बड़ा प्रतीकात्मक है। यह बताता है कि वह पुरुष दंभ से भरा है।

तुम्हारे सारे जीवन के बारे में क्या है? हर बात समस्या है, हर बात में द्वंद्व है। कारण यह है कि हमने यह विचार स्वीकार लिया है कि हम जानते हैं कि प्रेम कैसे किया जाता है। हम नहीं जानते हैं। हम जानवरों से आए हैं; जानवर प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम मनुष्य जीवन में बहुत नई बात है। जानवर पैदा करते हैं लेकिन वे प्रेम नहीं करते हैं। तुम भैंसों में रोमियो और जुलियट, लैला और मजनू, शिरी और फरहाद, सोनी और महिवाल नहीं पाओगे। कोई भी भैंसें इन रोमांटिक बातों में रुचि नहीं रखती हैं; वे बड़ी व्यावहारिक होती हैं, वे प्रजनन करती हैं, और प्रकृति भैंसों के साथ पूरी तरह से संतुष्ट है, याद रखना। हो सकता है कि प्रकृति मनुष्य को नष्ट करने की कोशिश कर रही हो लेकिन भैंसों और गधों और बंदरों को नष्ट करने का प्रयास नहीं कर रही है, नहीं। वे कतई समस्या नहीं हैं।

मानव चेतना के साथ प्रेम नई घटना है जो पैदा होती है। तुम्हें इसे सीखना होगा।

सुंदर चित्र, कविता, मूर्ति, संगीत, नृत्य सृजित करो; यह सब तुम्हारे हाथ में है। लेकिन जब तुम मनुष्य के संपर्क में आते हो, तुम्हें समझना होगा कि दूसरी तरफ भी उसी तरह की चेतना है। जिस व्यक्ति को तुम प्रेम करते हो उसे सम्मान और गौरव देना होगा। यह कारण है कि तुम मनुष्य के साथ संबंधित नहीं हो सकते।

मनुष्य और प्रेम के बारे में भूल जाओ; तुम बस ध्यान करो। यह तुम्हें अंतर्दृष्टि, दर्शन, स्पष्टता और बांटने की ऊर्जा देगा।

अपनी अतिशय ऊर्जा को बांटने का नाम प्रेम है। तुम्हारे पास बहुत अधिक है, तुम उससे बोझिल हो। तुम उसे बांटना चाहते हो उन लोगों के साथ जिन्हें तुम पसंद करते हो। तुम्हारा प्रेम--जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।

तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?

तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'

लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।

प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।

मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।

सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।
-ओशो


Saturday, April 16, 2011

''जीना बिना भय के '' मैं मेरे आसपास एक कवच महसूस करता हूं जोकि मुझे लोगों के करीब आने से रोकता हैं। मुझे नहीं पता यह कहां से आ रहा है। इसे कैसे पिघला कर दूर करना है?







हर किसी के पास उस तरह का कवच है।

इसके लिए कारण हैं। सबसे पहले, बच्चा बिलकुल असहाय उस दुनिया में पैदा होता है जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता है। स्वभावत:जो अनजान है उसे सामना करने से उसे डर लगता है। वह अभी तक पूर्ण सुरक्षा के उन नौ महीनों को नहीं भूला है, खतरे से खाली, जब कोई समस्या नहीं थी, कोई जिम्मेदारी नहीं, कल के बारे में कोई चिंता नहीं।

हमारे लिए वे नौ महीने हैं लेकिन बच्चे के लिये अनंत काल हैं। वह कैलेंडर के बारे में कुछ नहीं जानता; वह मिनट, घंटे, दिन या महीने के बारे में कुछ भी नहीं जानता। वह पूर्ण सुरक्षा और संरक्षा में एक अनंत काल रहा है, बिना किसी जिम्मेदारी के, और फिर अचानक उसे एक अज्ञात दुनिया में डाल दिया, जहां वह दूसरों पर सभी चीजो के लिए निर्भर है। यह स्वाभाविक है कि उसे भय लगेगा। हर कोई बड़ा और अधिक शक्तिशाली है, और वह दूसरों की मदद के बिना नहीं रह सकता। वह जानता है कि वह निर्भर है, उसने अपनी स्वतंत्रता, अपनी आजादी खो दी है। छोटी-छोटी घटनायें उसे उस वास्तविकता का कुछ स्वाद दे सकती है जिसका वह भविष्य में सामना करने जा रहा है।

नेपोलियन बोनापार्ट नेल्सन से हार गया था, लेकिन वास्तव में गौरव नेल्सन को नहीं जाना चाहिए। नेपोलियन बोनापार्ट अपने बचपन की एक छोटी सी घटना से हार गया था। अब इतिहास चीजों को इस तरह नहीं देखता है, लेकिन मेरे लिए यह बिल्कुल साफ है।

जब वह सिर्फ छह महीने का था, एक जंगली बिल्ली उस पर कूद गयी। नौकरानी जो उसे देख रही थी घर में किसी चीज़ के लिए गयी, वह बगीचे में था, सुबह के सूर्य और ताजा हवा में लेटा था, और जंगली बिल्ली उस पर कूद गयी। उसने उसे नुकसान नहीं पहुंचाया था - शायद वह सिर्फ खिलवाड़ कर रही थी -- लेकिन बच्चे के दिमाग के लिए यह लगभग मौत थी। तब से, उसे बाघ या शेर का डर नहीं था, वह बिना किसी हथियार के एक शेर से लड़ सकता था, बिना किसी भय के । लेकिन बिल्ली? वह एक अलग मामला था। वह बिल्कुल असहाय था। बिल्ली देखकर वह लगभग जम जाता था, वह फिर एक छह महीने का छोटा बच्चा बन जाता था, बिना किसी सुरक्षा के, बिना किसी लड़ने की क्षमता के। उस छोटे बच्चे की आंखों में वह बिल्ली बहुत बड़ी लगती होगी, यह एक जंगली बिल्ली थी। हो सकता है बिल्ली ने बच्चे की आंखों में देखा ।

उसका मन इस घटना से इतना कुछ प्रभावित हुआ कि नेल्सन ने इसका उपयोग किया। नेल्सन की नेपोलियन से कोई तुलना नहीं थी, और नेपोलियन अपने जीवन में कभी हारा नहीं था, यह उसकी पहली और आखिरी हार थी। वह हार भी नहीं सकता था, लेकिन नेल्सन सेना के मोर्चे पर सत्तर बिल्लियों को ले आया था।

जिस क्षण नेपोलियन ने उन सत्तर जंगली बिल्लियों को देखा, उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। उसके सेनापतियों को समझ में नहीं आ सका क्या हो गया है। वह कोई महान योद्धा नहीं रह गया था, वह लगभग भय से जम गया था, कांप रहा था। उसने कभी किसी सेनापति को सेना की व्यवस्था करने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन आज उसने आंखों में आंसू लेकर कहा, "मैं सोचने के काबिल नहीं हूं -- तुम सेना की व्यवस्था करो, मैं यहां हूं, लेकिन मैं लड़ने के काबिल नहीं हूं। मेरे साथ कुछ गलत हो गया है"।

वह हटा दिया गया था, लेकिन नेपोलियन के बिना उसकी सेना नेल्सन से लड़ने में सक्षम नहीं थी, और नेपोलियन की स्थिति देखते हुए, उसकी सेना में सब लोग थोड़ा डर गए थे: कुछ बहुत ही अजीब हो रहा था।

बच्चा कमजोर है, संवेदनशील, असुरक्षित है। स्वायत्तता से वह एक कवच बनाना शुरू करता है, एक सुरक्षा, अलग-अलग तरीकों से। उदाहरण के लिए, उसे अकेले सोना होता है। अंधेरा है और वह भयभीत है, लेकिन उसके साथ उसका भालू का खिलौना, टेडी बेयर है, और वह मानता है कि वह अकेला नहीं है, उसका दोस्त उसके साथ है। आप बच्चों को हवाई अड्डों पर, रेलवे स्टेशनों पर अपने टेडी बेयर को खींचते देखेंगे। क्या आपको लगता है कि यह सिर्फ एक खिलौना भर है? तुम्हारे लिए यह होगा, लेकिन बच्चे के लिये एक दोस्त है। और दोस्त भी उस वक्त जब कोई मददगार नहीं है -- रात के अंधेरे में, अकेले बिस्तर में, अभी भी वह उसके साथ है। वह मनोवैज्ञानिक टेडी बेयर पैदा करेगा।

तुम्हें मैं याद दिलाना चाहता हूं कि हालांकि एक वयस्क आदमी सोच सकता है कि उसके पास कोई टेडी बेयर नहीं है, वह गलत है। उसका भगवान क्या है? बस एक खिलौना। अपने बचपन के डर से, आदमी एक पिता तुल्य हस्ती बना लेता है जो सब जानता है, जो सर्व शक्तिमान है, जो हर जगह मौजूद है, अगर तुम्हें उसमें पर्याप्त विश्वास है वह तुम्हारी रक्षा करेगा। लेकिन सुरक्षा का विचार, यह विचार मात्र कि एक रक्षक की जरूरत है, बचकाना है। तो फिर तुम प्रार्थना सीखते हो, ये तो बस तुम्हारे मनोवैज्ञानिक रक्षा कवच के कुछ हिस्से हैं। प्रार्थना भगवान को याद दिलाने के लिए है कि तुम यहां हो, रात में अकेले।

मेरे बचपन में मैं हमेशा अचम्भित होता था... मैं नदी को प्यार करता था, जो कि पास में थी, मेरे घर से सिर्फ दो मिनट पैदल की दूरी पर। सैकड़ों लोगों स्नान करने के लिए वहां आया करते थे और मैं हमेशा अचम्भित होता था...गर्मियों में जब वे नदी में गोता लगाते हैं वे भगवान का नाम नहीं दोहराते, वे मनोवैज्ञानिक टेडी बेयर पैदा करेंगे "हरे कृष्ण, हरे राम”! वे मनोवैज्ञानिक टेडी बेयर पैदा करेंगे लेकिन सर्दियों में वे दोहराते हैं, “हरे कृष्ण, हरे राम”। वे "हरे कृष्ण, हरे राम” दोहराते हुए जल्दी से स्नान करते हैं।

मैं अचम्भित हो रहा था, क्या मौसम से फर्क पड़ता है? मैं अपने माता पिता से पूछता था, "यदि 'हरे कृष्ण, हरे राम’ के भक्त हैं, तब गर्मी उतनी ही अच्छी है जितनी कि सर्दी”।

लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह ईश्वर या प्रार्थना या धर्म है, यह सिर्फ ठंड है! वे 'हरे कृष्ण, हरे राम" का कवच बना रहे हैं। वे अपना बहलाव कर रहे हैं। यहां बहुत ठंड है, और एक मोड़ की जरूरत है -- और यह मदद करता है। गर्मियों में वहां कोई जरूरत नहीं है, वे बस भूल जाते हैं कि पूरी सर्दियों वे सब क्या कर रहे थे।

हमारी प्रार्थनायें, हमारे अलाप, हमारे मंत्र, हमारे शास्त्र, हमारे देवता, हमारे पुजारी, हमारे मनोवैज्ञानिक कवच का हिस्सा हैं। यह बहुत सूक्ष्म है। एक ईसाई का विश्वास है कि वह बच जाएगा -- और कोई नहीं। अब यह उसकी रक्षा व्यवस्था है। हर कोई उसे छोड़कर नरक में गिर रहा है, क्योंकि वह एक ईसाई है। लेकिन हर धर्म एक ही रास्ते में विश्वास करता है कि केवल वे ही बचे रहेंगे।

यह धर्म का सवाल नहीं है। यह भय का सवाल है और भय से बचने के लिये किया जा रहा है, तो यह एक तरह से प्राकृतिक है। लेकिन तुम्हारी परिपक्वता के एक निश्चित बिंदु पर, ज्ञान की मांग है कि उसे गिरा दिया जाये। जब तुम एक बच्चे थे यह अच्छा था, लेकिन एक दिन तुम्हें अपने टेडी बेयर को छोड़ना है वैसे ही जैसे एक दिन तुम अपने ईश्वर को छोड़ना है, बस उसी तरह एक दिन तुमने ईसाई धर्म, हिन्दू धर्म को छोड़ दिया है। अंत में, जिस दिन तुमने सब कवच छोड़ दिये तुमने भय से रहना छोड़ दिया।

और किस तरह जीना डर से बाहर हो सकता है? एक बार कवच छोड़ दिये तो तुम प्यार के धरातल पर रह सकते हो, तुम एक परिपक्व तरीके से रह सकते हो। पूरी तरह परिपक्व आदमी को कोई डर नहीं होता, कोई बचाव नही है, वह मानसिक रुप से पूरी तरह से खुला है और सुभेद्य है।

एक बिंदु पर कवच की आवश्यकता हो सकती है... शायद है भी। लेकिन जैसे ही तुम विकसित होते हो, यदि तुम केवल बूढ़े नहीं हो रहे हो लेकिन बड़े हो रहे हो, परिपक्व हो रहे हो, तब तुम देखना शुरू कर दोगे कि तुम अपने साथ क्या ले जा रहे हो। क्यों तुम भगवान में विश्वास करते हो? एक दिन तुम स्वयं भी देखोगे कि तुमने भगवान को नहीं देखा है, तुम्हारे पास भगवान का कोई संपर्क नहीं था, और भगवान में विश्वास करते रहना एक झूठ है: तुम ईमानदार नहीं हो ।

किस तरह का धर्म होगा जब कोई ईमानदारी, प्रामाणिकता नहीं है? तुम तुम्हारे विश्वासों के लिए कोई कारणा भी नहीं दे सकते, और अभी भी तुम उन्हें पकड़कर चलते हो।

बारीकी से देखो और तुम्हें उनके पीछे भय मिल जाएगा।

एक परिपक्व व्यक्ति खुद को जो कुछ भी भय के साथ जुड़ा हुआ है उससे अलग कर सकता है। इसी तरह परिपक्वता आती है।

बस अपने सभी कृत्यों, अपने सभी विश्वासों को देखो और पता लगाओ कि उनके आधार वास्तविकता में हैं, अनुभव में, या भय में हैं। और जिसका भी आधार भय में होता है उसे तुरंत गिरा दिया जाये, बिना पुनर्विचार के। यह तुम्हारा कवच है। मैं इसे नहीं पिघला सकता। मैं बस तुम्हें दिखा सकता हूं कि कैसे तुम इसे छोड़ सकते हो।

हम भय में जीए जाते हैं -- यही कारण है कि हम हर दूसरा अनुभव जहरीला करते चले जा रहे हैं। हम किसी को प्यार करते हैं, लेकिन डर के मारे। यह खराब कर देता है, यह जहरीला है। हमें सच की तलाश है, लेकिन अगर खोज डर से है तो तुम इसे खोजने नहीं जा रहे हैं।

तुम जो भी करो, एक बात स्मरण रहे, भय से तुम विकसित नहीं होओगे। तुम केवल सिकुड़ जाओगे और मर जाओगे। भय मौत की सेवा में होता है।

महावीर सही हैं: वह निडरता को एक निडर व्यक्ति की बुनियाद बनाते हैं। और मैं समझ सकता हूं निडरता से उनका क्या मतलब है। उनका मतलब सब कवच को छोड़ना है। एक निडर व्यक्ति के पास वह सब कुछ है जो जीवन तुम्हें उपहार के रूप में देना चाहता है। अब कोई बाधा नहीं है। तुम पर उपहारों की बौछार होगी, और तुम जो भी करोगे, तुम्हारे पास एक बल, एक शक्ति, एक निश्चितता होगी, अधिकार का एक जबरदस्त अहसास होगा।

एक भयभीत रहने वाला आदमी हमेशा भीतर से कांप रहा हैं। वह निरंतर पागल हो जाने के बिंदु पर है, क्योंकि जीवन बड़ा है, और यदि तुम निरंतर भय में हो... और भय के कई प्रकार हैं। तुम एक बड़ी सूची बना सकते हो और तुम हैरान होंगे कि कितने भय हैं - और तुम अभी भी जीवित हो! वहां सभी तरफ संक्रमण हैं, रोग, खतरे, अपहरण, आतंकवादी …और इतनी छोटी सी जिंदगी। और अंत में मौत है, जिससे तुम बच नहीं सकते। तुम्हारा पूरा जीवन अंधकारमय हो जाएगा।

भय छोड़ो! भय तुम्हारे द्वारा लिया गया था तुम्हारे बचपन में, अनजाने में, अब जानते हुए इसे छोड़ दो और परिपक्व हो जाओ। और तब जैसे-जैसे तुम विकसित होते जाते हो, जिंदगी एक प्रकाश हो सकता है जो गहराता जाता है। -ओशो 

Monday, April 4, 2011

जब हनीमून समाप्त हो जाता है तो इसके बाद क्या ........?????????








जब हनीमून का जादू क्षीण हो जाता है तो आपके क्या विकल्प होते हैं? आप आग को पुनः प्रज्वलित कर सकते हैं, आप कोई नया साथी खोज सकते हैं और दूसरा हनीमून मना सकते हैं, या आप ऊर्जा को कुछ ज्यादा ताजगी से और ज्यादा गहराई के साथ रूपांतरित कर सकते हैं।

प्रेम एक गुलाब का फूल है। सुबह यह हवा में, धूप में झूमता रहता है और लगता है कि इसी मस्ती के साथ, ऐसी ही निश्चितता के साथ, इसी अधिकार के साथ यह सदैव बना रहेगा। यह इतना कोमल और फिर भी इतना मजबूत होता है कि हवा बहे, वर्षा हो, धूप हो, उसमें भी खिला रहता है, लेकिन सायंकाल तक इसकी पंखुड़ियां बिखर जाती हैं और गुलाब समाप्त हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि यह एक भ्रांति थी। इसका साधारण सा मतलब यही है कि जीवन में हर वस्तु बदलती रहती है। और परिवर्तन हर चीज को नया और ताजा कर देता है।

जिस दिन विवाह समाप्त हो जाएगा पुरुष और स्त्री का जीवन स्वस्थ हो जाएगा, निश्चित रूप से तुम्हारी कल्पना से भी अधिक लंबा रहेगा। विवाह जीवन की बदलती हुई प्रकृति के विरोध में है, यह स्थायी का सृजन करता है। पति और पत्नी दोनों सुस्त और ऊबे हुए रहते हैं--जीवन में रस खो जाता है। निश्चित ही उन्हें अपना रस नष्ट करना ही होता है अन्यथा विवाद निरंतर बना रहता है। पति किसी दूसरी औरत में कोई रुचि नहीं ले सकता, पत्नी दूसरे पुरुष के साथ नहीं हंस सकती। वे एक-दूसरे के कैदी हो जाते हैं। जीवन बोझ बन जाता है और यह एक दिनचर्या बन जाती है।

ऐसा जीवन कौन जीना चाहता है? जीने की इच्छा क्षीण हो जाती है। इससे रुग्णता और बीमारियां पैदा हो जाती हैं क्योंकि मृत्यु के प्रति उनकी कोई प्रतिरोधिता नहीं होती। वास्तव में वे यह सोचने लगते हैं के इस सारे कुचक्र को शी्घ्र ही जैसे भी हो समाप्त किया जाए। भीतर ही भीतर वे मृत्यु की इच्छा करने लगते हैं। उनकी मरने की इच्छा जाग"त हो जाती है।

सिगमंड फ्रायड पहला व्यक्ति था जिसने यह पता लगाया कि मनुष्य के अचेतन मन में मृत्यु की इच्छा विद्यमान होती है। किंतु फ्रायड के साथ मैं सहमत नहीं हूं। मृत्यु की यह इच्छा कोई सहज प्रवृत्ति नहीं है। यह विवाह की देन है, यह एक उबाऊ जीवन की देन है। जब व्यक्ति यह अनुभव करने लगता है कि जीने में अब कोई रोमांच नहीं है। कोई नई जगह, कोई नया ठिकाना नहीं मिलता, तो अनावश्यक रूप से जीते रहने का क्या लाभ है? तब तो कब्र में शाश्वत नींद ही ज्यादा आरामदायक लगती है, जो ज्यादा सुविधाजनक और कहीं ज्यादा आनंददायक होती है।

किसी भी पशु में मृत्यु की इच्छा विद्यमान नहीं होती। जंगल में कोई भी पशु आत्महत्या नहीं करता। किंतु आश्चर्य यह है कि चिड़ियाघर में पशु भी आत्महत्या करते हुए पाए गए। और विवाह प्रत्येक व्यक्ति को चिड़ियाघर का एक पशु बना देता है--परिष्कृत, हजारों सूक्ष्म तरीकों से जंजीरों में जकड़ा हुआ होता है। सिगमंड फ्रायड को जंगली जानवरों या असभ्य मनुष्यों का पता नहीं था।

मैं चाहता हूं कि मनुष्य में कुछ जंगलीपन शेष रहे। यह मेरा विद्रोह है। उसे चिड़ियाघर का हिस्सा नहीं बनना है, वह तो स्वाभाविक ही बना रहेगा। वह जीवन के विरोध में नहीं जाएगा, वह तो जीवन के साथ बहेगा। यदि पुरुष और स्त्री समझौता कर सकते हैं कि हमें चिडियाघर का हिस्सा नहीं बनना है, जो बिलकुल भी कठिन नहीं है, जो सबसे सरल है, तो हमें चिड़ियाघर से मुक्ति मिल सकती है। इसी बात की जरूरत है--विवाह से मुक्ति।

यदि स्त्री अपन स्वाभाविक जंगलीपन में बड़ी होती है और पुरुष अपने सहज जंगलीपन में बड़ा होता है, और अजनबी की तरह वे मैत्री भाव से मिलते हैं, तो उनके प्रेम में असीम गहराई होगी, अत्याधिक आनंद और सुखद नृत्य होगा।

इसमें कोई करार नहीं होता, इसमें कोई कानून नहीं होता-- प्रेम स्वयं में एक कानून है--और जब प्रेम समाप्त हो जाता है वे एक-दूसरे को कृतज्ञता के साथ अलविदा कहेंगे, जो सुंदर क्षण उन्होंने एक साथ व्यतीत किए हैं, वे गीत जो उन्होंने एक साथ गाए हैं, वे नृत्य जो उन्होंने पूर्णिमा के दिन किया था, समुद्र तट पर उन संगीतमय क्षणों के लिए कृतज्ञता के साथ। वे उद्यान की उन मधुर स्मृतियों को अपने साथ संजोए हुए रखेंगे, और वे हमेशा-हमेशा के लिए कृतज्ञ रहेंगे। किंतु वे एक-दूसरे की स्वतंत्रता में बाधक नहीं बनेंगे, उनका प्रेम इसे रोकता है। उनके प्रेम को अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। अतीत में यह अधिक से अधिक दासता देता आया है।
                                                                    -ओशो