बुनियादी भूल जो सारी शिक्षा और सारी सभ्यता को खाए जा रही है, वह यह है कि अब तक के जीवन का सारा निर्माण पुरुष के आसपास हुआ है, स्त्री के आसपास नहीं। अब तक की सारी सभ्यता, सारी संस्कृति, सारी शिक्षा पुरुष ने निर्मित की है, पुरुष के ढंग से निर्मित हुई है, स्त्री के ढंग से नहीं। पुरुष के जो गुण हैं, सभ्यता ने उनको ही सब कुछ मान रखा है। स्त्री की जो संभावना है, स्त्री के जो मन के भीतर छिपे हुए बीज हैं, वे जैसे विकसित हो सकते हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पुरुष बिलकुल अधूरा है, स्त्री के बिना तो बहुत अधूरा है। और पुरुष अगर अकेला ही सभ्यता को निर्मित करेगा तो वह सभ्यता भी अधूरी होगी; न केवल अधूरी होगी, बल्कि खतरनाक भी होगी। वह खतरनाक इसलिए होगी कि पुरुष के मन की जो तीव्र आकांक्षा है वह एंबीशन है, महत्वाकांक्षा है। पुरुष के मन में प्रेम बहुत गहराई पर नहीं है, महत्वाकांक्षा! और जहां महत्वाकांक्षा है वहां ईर्ष्या होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां हिंसा होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां घृणा होगी, जहां महत्वाकांक्षा है वहां युद्ध होगा। पुरुष का सारा चित्त एंबीशन से भरा हुआ है। स्त्री के चित्त में एंबीशन नहीं है, महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि प्रेम है। और हमारी पूरी सभ्यता प्रेम से बिलकुल शून्य है, प्रेम से बिलकुल रिक्त है, प्रेम की उसमें कोई जगह नहीं है। पुरुष ने अपने ही ढंग से पूरी बात निर्मित कर ली है। उसकी सारी शिक्षा भी उसने अपने ढंग से निर्मित कर ली है। उसने जीवन की जो संरचना की है वह अपने ही ढंग से की है। उसमें युद्ध प्रमुख है, उसमें संघर्ष प्रमुख है, उसमें तलवार प्रमुख है। यहां तक कि अगर कोई स्त्री भी तलवार लेकर खड़ी हो जाती है तो पुरुष उसे बहुत आदर देता है। जोन ऑफ आर्क को, झांसी की रानी लक्ष्मी को पुरुष बहुत आदर देता है। इसलिए नहीं कि वे बहुत कीमती स्त्रियां थीं, बल्कि इसलिए कि वे पुरुष जैसी स्त्रियां थीं। वह उनकी मूर्तियां खड़ी करता है चौरस्तों पर। वह गीत गाता है: खूब लड़ी मर्दानी, झांसी वाली रानी थी। वह कहता है कि वह मर्दानी थी, इसलिए आदर देता है। लेकिन अगर कोई पुरुष जनाना हो तो अनादर करता है, आदर नहीं देता। स्त्री मर्दानी हो तो आदर देता है। स्त्री तलवार लेकर लड़ती हो, सैनिक बनती हो, तो पुरुष के मन में सम्मान है। पुरुष के मन में हिंसा के और महत्वाकांक्षा के अतिरिक्त किसी बात का कोई सम्मान नहीं है। यह जो पुरुष अधूरा है, सारी शिक्षा भी उसी पुरुष के लिए निर्मित हुई है। हजारों वर्षों तक स्त्री को कोई शिक्षा नहीं दी गई। एक बड़ी भूल थी कि स्त्री अशिक्षित रह जाए। फिर कुछ वर्षों से स्त्री को शिक्षा दी जा रही है। और अब दूसरी भूल की जा रही है कि स्त्री को पुरुषों जैसी शिक्षा दी जा रही है। यह अशिक्षित स्त्री से भी खतरनाक स्त्री को पैदा करेगी। अशिक्षित स्त्री कम से कम स्त्री थी। शिक्षित स्त्री पुरुष के ज्यादा करीब आ जाती है, स्त्री कम रह जाती है। क्योंकि जिस शिक्षा से गुजरती है उसका मौलिक निर्माण पुरुष के लिए हुआ है। एक ऐसी स्त्री पैदा हो रही है सारी दुनिया में, जो अगर सौ दो सौ वर्ष इसी तरह की शिक्षा चलती रही तो अपने समस्त स्त्री-धर्म को खो देगी। उसके जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, उसकी प्रतिभा में जो भी कीमती है, उसके स्वभाव में जो भी सत्य है, वह सब विनष्ट हो जाएगा। स्त्री शिक्षित होनी चाहिए। लेकिन उस तरह की शिक्षा में नहीं जो पुरुष की है। स्त्री के लिए ठीक स्त्री जैसी शिक्षा विकसित होनी जरूरी है। यह हमारे ध्यान में नहीं है और अभी मनुष्य-जाति के किन्हीं विचारकों के ध्यान में बहुत स्पष्ट नहीं है कि नारी की शिक्षा पुरुष से बिलकुल ही भिन्न शिक्षा होगी। नारी भिन्न है। मैं आपको यह कहना चाहता हूं, स्त्री और पुरुष समान आदर के पात्र हैं, लेकिन समान बिलकुल भी नहीं हैं, बिलकुल असमान हैं। स्त्री स्त्री है, पुरुष पुरुष है। और उन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क को अगर ध्यान में न रखा जाए तो जो भी शिक्षा होगी वह स्त्री के लिए बहुत आत्मघाती होने वाली है। वह स्त्री को नष्ट करने वाली होगी। स्त्री और पुरुष मौलिक रूप से भिन्न हैं। और उनकी यह जो मौलिक भिन्नता है, यह जो पोलेरिटी है, जैसे उत्तर और दक्षिण ध्रुव भिन्न हैं, जैसे बिजली के निगेटिव और पाजिटिव पोल भिन्न हैं, यह जो इतनी पोलेरिटी है, इतनी भिन्नता है, इसी की वजह से उनके बीच इतना आकर्षण है। इसी के कारण वे एक-दूसरे के सहयोगी और साथी और मित्र बन पाते हैं। यह असमानता जितनी कम होगी, यह भिन्नता जितनी कम होगी, यह दूरी जितनी कम होगी, उतना ही खतरनाक है मनुष्य के लिए। मेरी दृष्टि में, स्त्रियों को पुरुषों जैसा बनाने वाली शिक्षा, सारी दुनिया में हर, एक-एक बच्चे तक पहुंचाई जा रही है। पुरुष तो पहले से ही विक्षिप्त सभ्यता को जन्म दिया है। एक आशा है कि स्त्री एक नई सभ्यता की उन्नायक बने। लेकिन वह आशा भी समाप्त हो जाएगी अगर स्त्री भी पुरुष की भांति दीक्षित हो जाती है। मेरी दृष्टि में, स्त्री को गणित की नहीं, संगीत की और काव्य की शिक्षा ही उपयोगी है। उसे इंजीनियर बनाने की कोई भी जरूरत नहीं। इंजीनियर वैसे ही जरूरत से ज्यादा हैं। पुरुष पर्याप्त हैं इंजीनियर होने को। स्त्री को कुछ और होने की जरूरत है। क्योंकि अकेले इंजीनियरों से और अकेले गणितज्ञों से जीवन समृद्ध नहीं होता। उनकी जरूरत है, उनकी उपयोगिता है। लेकिन वे ही जीवन के लिए पर्याप्त नहीं हैं। जीवन की खुशी किन्हीं और बातों पर निर्भर करती है। बड़े से बड़ा इंजीनियर और बड़े से बड़ा गणितज्ञ भी जीवन में उतनी खुशी नहीं जोड़ पाता जितना गांव में एक बांसुरी बजाने वाला जोड़ देता है। मनुष्य-जाति की खुशी बढ़ाने वाले लोग, मनुष्य के जीवन में आनंद के फूल खिलाने वाले लोग वे नहीं हैं जो प्रयोगशालाओं में जीवन भर प्रयोग ही करते रहते हैं। उनसे भी ज्यादा वे लोग हैं जो जीवन के गीत गाते हैं और जीवन के काव्य को अवतरित करते हैं। मनुष्य जीता किसलिए है? काम के लिए? फैक्ट्री चलाने के लिए? रास्ते बनाने के लिए? मनुष्य रास्ते बनाता है, फैक्ट्री भी चलाता है, दुकान भी चलाता है, इसलिए कि इन सब से एक व्यवस्था बन सके और उस व्यवस्था में वह आनंद, शांति और प्रेम को पा सके। वह जीता हमेशा प्रेम और आनंद के लिए है। लेकिन कई बार ऐसा हो जाता है कि साधनों की चेष्टा में हम इतने संलग्न हो जाते हैं कि साध्य ही भूल जाता है। मेरी दृष्टि में, पुरुष की सारी शिक्षा साधन की शिक्षा है। स्त्री की सारी शिक्षा साध्य की शिक्षा होनी चाहिए, साधन की नहीं। ताकि वह पुरुष के अधूरेपन को पूरा कर सके। वह पुरुष के लिए परिपूरक हो सके। वह पुरुष के जीवन में जो अधूरापन है, जो कमी है, उसे भर सके। पुरुष फैक्ट्रियां खड़ी कर लेगा, बगीचे कौन लगाएगा? पुरुष बड़े मकान खड़े कर लेगा, लेकिन उन मकानों में गीत कौन गुंजाएगा? पुरुष एक दुनिया बना लेगा जो मशीनों की होगी, लेकिन उन मशीनों के बीच फूलों की जगह कौन बनाएगा? स्त्री के व्यक्तित्व के प्रेम को कितना गहरा कर सके, ऐसी शिक्षा चाहिए। ऐसी शिक्षा चाहिए जो उसके जीवन को और भी सृजनात्मक प्रेम की तरफ ले जा सके। ओशो |
शिल्पकार बनना आसान है क्योंकि तुम निर्जीव वस्तुओं को देख रहे हो। तुम सुंदर मूर्ति बना सकते हो लेकिन वे मूर्तियां मृत हैं। तुम उनके साथ संबंधित नहीं हो सकते, तुम जीवंत हो। जीवन और मृत्यु के बीच संवाद संभव नहीं है।
तुम प्रशंसा कर सकते हो; तुम आनंद मना सकते हो; यह तुम्हारा सृजन है। तुम संतुष्ट हो सकते हो; जो कुछ भी तुम चाहो, करने में तुम सफल हुए। लेकिन एक बात याद रखो : दूसरी तरफ, वहां कोई नहीं है। तुम अकेले हो।
इस स्थिति के कारण, यहां ऐसे लोग हैं जो अपने कुत्तों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपने बगीचों को प्रेम कर सकते हैं, जो अपनी कारों को प्रेम कर सकते हैं, वे दुनिया में मानव के अतिरिक्त हर चीज को प्रेम कर सकते हैं। क्योंकि मनुष्य का मतलब है कि तुम अकेले नहीं हो, दूसरा वहां है। वह संवाद है। मूर्ति के साथ, यह एकालाप है। मूर्ति कुछ भी कहने वाली नहीं है, वह तुम्हारी आलोचना करने वाली नहीं है, तुम्हारे ऊपर आधिपत्य जमाने वाली नहीं है। तुम मूर्ति पर आधिपत्य रखते हो; तुम उसे बाजार में बेच सकते हो। लेकिन यह तुम मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह समस्या है।
जब तुम मानव जाति से संबंधित होना शुरू करते हो, तुम्हें यह मानना होगा कि वे वस्तुएं नहीं हैं, वे चेतनाएं हैं। तुम उन पर प्रभुत्व नहीं जमा सकते...हालांकि सभी यह करने की कोशिश कर रहे हैं, और अपने सारे जीवन को नष्ट कर रहे हैं। जिस क्षण तुम किसी मानव पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते हो, तुम शत्रु पैदा करते हो, क्योंकि वह मनुष्य भी प्रभुत्व जमाना चाहता है। तुम इसे प्रेम कह सकते हो, तुम इसे दोस्ती कह सकते हो, लेकिन दोस्ती और प्रेम और भाईचारे के पर्दे के पीछे गहरे में वहां शक्ति की चाह है। तुम प्रभुत्व करना चाहते हो; तुम अधीन नहीं होना चाहते।
मनुष्यों के साथ, तुम सतत संघर्ष में होओगे। जितने करीब तुम होओगे उतना ही संघर्ष तुम्हें कष्ट देगा। यहां हजारों लोग हैं जो मनुष्यों के साथ रिश्तों के कारण इतने आहत हुए हैं कि वे मनुष्यों के साथ प्रेम, दोस्ती से दूर चले गए हैं। वे वस्तुओं की तरफ मुड़ गए हैं। यह आसान है : जो भी तुम चाहते हो वह दूसरा हमेशा करना चाहता है।
तुम कलाकार हो, तुम मूर्ति बनाते हो। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम क्या कर रहे हो? तुम संगमरमर से टुकड़े निकाल रहे हो; जो तुम मनुष्यों के साथ नहीं कर सकते, लेकिन लोग मनुष्यों के साथ भी यह कर रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों के पंख काट रहे हैं, उनकी स्वतंत्रता काट रहे हैं, उनकी निजता काट रहे हैं। प्रेमी एक-दूसरे को सतत काट रहे
मनुष्य के साथ प्रेम में होना आसान बात नहीं है। दुनिया में प्रेम संबंध सबसे कठिन है ; इसकी बस साधारण सी वजह यह है कि दो चेतनाएं, दो जीवंत मनुष्य, किसी भी तरह की गुलामी को सहन नहीं कर सकते।
जब माता-पिता अपने बच्चों को कहते हैं, "यह मत करो!' छोटे से बच्चे को भी ठेस पहुंचती है, अपमानित महसूस करता है, बेइज्जती महसूस करता है। और उसे ऐसा होगा यदि उसमें किसी प्रकार का साहस है।
तुम वस्तुओं के ऊपर, चीजों के ऊपर कार्य कर रहे हो। वे हां नहीं कह सकती, वे ना नहीं कह सकती। जो कुछ भी उनके साथ तुम करना चाहते हो, तुम कर सकते हो, लेकिन मनुष्य के साथ नहीं कर सकते। यह तुम्हारी गलती है कि अभी भी तुम इतने प्रौढ़ नहीं हुए कि समझ पाओ कि मनुष्य के साथ, यदि तुम प्रेमपूर्ण रिश्ता चाहते हो तो तुम्हें सारी शक्ति की राजनीति को भूल जाना चाहिए। तुम बस मित्र हो सकते हो, न तो दूसरे पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते, न ही दूसरे द्वारा प्रभुत्व जमाने देना चाहते हो। यह संभव है यदि तुम्हारे जीवन में एक तरह का ध्यान हो। वर्ना, यह संभव नहीं है।
मनुष्य को प्रेम करना दुनिया में बहुत कठिन कार्य है क्योंकि जिस क्षण तुम अपना प्रेम बताना शुरू करते हो, दूसरा शक्ति की कामना करने लगेगा। वह जानता है या जानती है कि तुम उस पर आश्रित हो। तुम मनोवैज्ञानिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से गुलाम हो सकते हो और कोई भी गुलाम नहीं होना चाहता। लेकिन तुम्हारे सारे मानवीय रिश्ते गुलामी में बदल जाते हैं।
कोई भी मूर्ति तुम्हें गुलाम नहीं बनाएगी। इसके विपरीत, मूर्ति तुम्हें परम शिल्पकार बनाएगी, वह तुम्हें सृजनकार बनाएगी, कलाकार बनाएगी। वहां किसी प्रकार का द्वंद्व नहीं है। प्रेम की असली परीक्षा मनुष्यों के साथ होती है।
वह व्यक्ति सचमुच प्रतिभावान होगा यदि वह मनुष्य के साथ सहजता से रिश्ता बना सकता है। इसके लिए बहुत गहन अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है। मूर्ति बनाना या सुंदर चित्रकारी करना एक बात है; वे रंग ऐसा नहीं कहेंगे कि "मैं कैनवास के कोने में नहीं जाना चाहता, मैं बस अस्वीकार करता हूं!' जहां कहीं तुम उसे चाहते हो, रंग उपलब्ध है। लेकिन यह मनुष्य के साथ आसान नहीं है।
हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह किसी के द्वारा गुलाम नहीं बनाया जाए , लेकिन जन्म कर्तव्य भी है कि किसी के ऊपर प्रभुत्व न जमाए। और सिर्फ तब ही, मित्रता खिल सकती है।
प्रेम के पास स्पष्ट देखने की नजर होनी चाहिए। प्रेम को सब तरह की गंदगी को साफ करने की जरूरत होती है जो तुम्हारे मन में है : ईर्ष्या, क्रोध, प्रभुत्व जमाने की चाह।
मैंने सुना है...शादी के रजिस्ट्रार आफिस में, एक जोड़ा शादी के लिए आया। उन्होंने फॉर्म भरे। स्त्री ने पुरुष की तरफ देखा, वे प्रेमी थे, वे अपने परिवारों के खिलाफ रजिस्टर आफिस आए थे, क्योंकि भारत में, शादी रजिस्ट्रार के आफिस में नहीं होती है। कानूनी रूप से तुम कर सकते हो लेकिन वह तब ही होती है जब तुम परिवार के खिलाफ करते हो, समाज के खिलाफ करते हो।
वे दो लोग निश्चित ही गहरे में प्यार में रहे होंगे। उन्होंने समाज के खिलाफ, धर्म के खिलाफ, माता-पिता के खिलाफ, परिवार के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने हर चीज का जोखिम लिया और वे शादी करने ही वाले थे। स्त्री ने पुरुष की तफर देखा जो फॉर्म भर रहा था, क्योंकि उसने अपना भर लिया था; और तब अचानक उसने रजिस्ट्रार को कहा, "मैं तत्काल तलाक चाहती हूं।'
वह बोला, "क्या हुआ? तुम शादी के लिए फॉर्म भर रही हो। हनीमून भी नहीं हुआ है। सच तो यह है कि अभी शादी भी नहीं हुई है क्योंकि अभी मैंने सील नहीं लगाई है। तुम अचानक तलाक क्यों चाहती हो?'
वह बोली, "मैं इस पुरुष से नफरत करती हूं!'
रजिस्ट्रार बोला, "यह अजीब बात है! तुम इसे यहां लेकर आई हो?'
वह बोली, "हां, मैं उसे यहां लेकर आई हूं। मैं इसे प्यार किया करती थी, लेकिन जब मैंने उसका फॉर्म देखा...उसने इतने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए! वह देख रहा था जब मैं हस्ताक्षर कर रही थी। मैंने उसी तरह से हस्ताक्षर किए जैसे कि मैं हमेशा करती हूं, और इसने तीन गुना बड़े शब्दों में हस्ताक्षर किए; लगभग आधे फॉर्म में इसके हस्ताक्षर हैं! मैं इस आदमी के साथ जीना नहीं चाहती, इसने अपना प्रभुत्व, अपनी ताकत बता दी है।'
रजिस्ट्रार बोला, "तब किसी तलाक की जरूरत नहीं है। बस अपने फॉर्म को कचरे के डिब्बे में फेंक दो, क्योंकि अभी मैंने उन पर मुहर नहीं लगाई है, और यहां से चले जाओ।'
इतनी छोटी सी बात कि पुरुष ने बड़े शब्दों में हस्ताक्षर कर दिया! लेकिन यह बड़ा प्रतीकात्मक है। यह बताता है कि वह पुरुष दंभ से भरा है।
तुम्हारे सारे जीवन के बारे में क्या है? हर बात समस्या है, हर बात में द्वंद्व है। कारण यह है कि हमने यह विचार स्वीकार लिया है कि हम जानते हैं कि प्रेम कैसे किया जाता है। हम नहीं जानते हैं। हम जानवरों से आए हैं; जानवर प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम मनुष्य जीवन में बहुत नई बात है। जानवर पैदा करते हैं लेकिन वे प्रेम नहीं करते हैं। तुम भैंसों में रोमियो और जुलियट, लैला और मजनू, शिरी और फरहाद, सोनी और महिवाल नहीं पाओगे। कोई भी भैंसें इन रोमांटिक बातों में रुचि नहीं रखती हैं; वे बड़ी व्यावहारिक होती हैं, वे प्रजनन करती हैं, और प्रकृति भैंसों के साथ पूरी तरह से संतुष्ट है, याद रखना। हो सकता है कि प्रकृति मनुष्य को नष्ट करने की कोशिश कर रही हो लेकिन भैंसों और गधों और बंदरों को नष्ट करने का प्रयास नहीं कर रही है, नहीं। वे कतई समस्या नहीं हैं।
मानव चेतना के साथ प्रेम नई घटना है जो पैदा होती है। तुम्हें इसे सीखना होगा।
सुंदर चित्र, कविता, मूर्ति, संगीत, नृत्य सृजित करो; यह सब तुम्हारे हाथ में है। लेकिन जब तुम मनुष्य के संपर्क में आते हो, तुम्हें समझना होगा कि दूसरी तरफ भी उसी तरह की चेतना है। जिस व्यक्ति को तुम प्रेम करते हो उसे सम्मान और गौरव देना होगा। यह कारण है कि तुम मनुष्य के साथ संबंधित नहीं हो सकते।
मनुष्य और प्रेम के बारे में भूल जाओ; तुम बस ध्यान करो। यह तुम्हें अंतर्दृष्टि, दर्शन, स्पष्टता और बांटने की ऊर्जा देगा।
अपनी अतिशय ऊर्जा को बांटने का नाम प्रेम है। तुम्हारे पास बहुत अधिक है, तुम उससे बोझिल हो। तुम उसे बांटना चाहते हो उन लोगों के साथ जिन्हें तुम पसंद करते हो। तुम्हारा प्रेम--जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।
तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?
तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'
लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।
प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।
मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।
सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।