Tuesday, February 26, 2013

''मुक्ति '' की कवितायें ....


                                           
प्यार करते हुए
प्यार करते हुए
जब-जब लड़के ने डूब जाना चाहा
लड़की उसे उबार लाई।
जब-जब लड़के ने खो जाना चाहा प्यार में
लड़की ने उसे नयी पहचान दी।
लड़के ने कहा, “प्यार करते हुए अभी इसी वक्त
मर जाना चाहता हूँ मैं तुम्हारी बाहों में
लड़की बोली, “देखो तो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है,
और वो तुम्हारी ही तो नहीं, मेरी भी है
तुम्हारे परिवार, समाज और इस विश्व की भी है।

प्यार करते हुए
लीन हो गए दोनों एक सत्ता में
पर लड़की ने बचाए रखा अपना अस्तित्व
ताकि लड़के का वजूद बना रह सके ।
लड़का कहता प्यार समर्पण है एक-दूसरे में
अपने-अपने स्वत्व का’   
लड़की कहती प्यार मिलन है दो स्वतन्त्र सत्ताओं का
अपने-अपने स्वत्व को बचाए रखते हुए

प्यार करते हुए
लड़का सो गया गहरी नींद में देखने सुन्दर सपने
लड़की जागकर उसे हवा करती रही।
लड़के ने टूटकर चाहा लड़की को
लड़की ने भी टूटकर प्यार किया उसे

प्यार करते हुए
लड़के ने जी ली पूरी ज़िंदगी
और लड़की ने मौत के डर को जीत लिया।                    
लड़का खुश है आज अपनी ज़िंदगी में
लड़की पूरे ब्रम्हाण्ड में फैल गयी।

गाँव की मिट्टी

मैं नहीं कहती
कि मेरे दामन को
तारों से सजा दो
चाँद को तोड़कर
मेरा हार बना दो
मेरे लिये
कुछ कर सकते हो
तो इतना करो
मेरे गाँव की मिट्टी की
सोंधी खुशबू ला दो


तुम्हारा जाना

फूल सभी मुरझा गये

सूरज बुझ गया

चिड़िया गूँगी हो गयी,

सन्नाटा फैल गया

सब ओर

दिशायें सूनी हो गयीं,

रंगो से भरा ये संसार

कब हो गया फीका-सा

मुझे धुँधली सी भी नहीं याद,

कि देखी हैं कब बहारें मैंने

तुम्हारे जाने के बाद.

…….

तुम्हारे आने से

फैल जाती थी

हवाओं में महक,

और गुनगुना उठती थीं

पेड़ों की पत्तियाँ,

लगता था सारा संसार

अपना-अपना सा,

जगता था

अपने अस्तित्व की

पूर्णता का एहसास,

आज अधूरी हो गयी हूँ मैं

तुम्हारे जाने के बाद.


फिर एक इंतज़ार

 

तुम क्यों आते हो??
तुम्हारे आने के साथ
आता है डर
तुम्हारे जाने का,
मैं भी  कितनी पागल हूँ
कि तुम्हारे आने से पहले
तकती हूँ राह तुम्हारी,
और करती हूँ
घण्टों इंतज़ार
और तुम्हारे आने के बाद
हो जाती हूँ उदास
कि कुछ देर रहकर साथ
लौट जाओगे तुम,
पीछे छोड़ जाओगे
उदासी, सूनापन
और फिर
एक लंबा इंतज़ार… …


आसमान की ओर देखता हुआ
घुरहू केवट खुश है
गाँववालों…!!
तुम भले ही
मत आने दो
नहर का पानी
मेरे खेतों तक,
पर आकाश
नहीं करता पक्षपात
देखो,
बादल आ गये हैं
वो बरसेंगे सभी खेतों पर
एक समान,
तब मैं करूँगा
धान की रोपाई,
और जितना अन्न
तुम पैसे से उपजाओगे,
उससे कहीं ज़्यादा
मैं उपजाउँगा
अपने पसीने से…”

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