Thursday, July 4, 2013

सबद फिल्‍म : "प्रेम के सुनसान में" से कुछ पंक्तियाँ



पुराने कमरे उन प्रेमिकाओं की तरह होते हैं जिनसे यों तो हमारा संबंध टूट गया है, पर जिनकी याद है, लगाव है, कभी-कभार का लौटना भी. आखिर उनके साथ इतना वक़्त जो गुजारा हुआ होता है हमने : निजी और आत्मीय.



हमें उन लड़कियों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जिन्हें देखकर, मिलकर, बातें करते हुए या रेस्तरां में साथ चाय/कॉफ़ी पीते हुए हमारे मन में एक हूक उठी थी : एक हिचकी जो अब शांत है, पर जिससे पहली दफ़ा अंदाज़ा हुआ था कि हम प्यासे हैं, हमें पानी की ज़रूरत है ...




हम प्रेम करते हुए अक्सर अकेले पड़ जाते हैं. दुःख इस बात का नहीं कि यह अकेलापन असह्य है. दुःख इस बात का है कि इसे सहने का हमारा ढंग इतना बोदा है कि हमसे वह आलोक तक छिन जाता है, जो प्रेम के इस सुनसान में हमारे साथ चलता.



कोशिश करके भूलना बेतरह याद की निशानी है. इसलिए हम कुछ भी भूलना अफोर्ड नहीं करते : न चीजें, न चेहरे, न हमारे साथ हुआ/अनहुआ. असल में विस्मृति स्वयं उन घटनाओं, चीज़ों, चेहरों और ब्योरों को हमसे अलग करती जाती है जिनका बेतुका संग-साथ हमसे बना रहता है.



दुपहर बारिश हुई. बारिश इतना और यह करती है कि सब एक छत के नीचे खड़े हो जाएँ.
वह मेरे बगल में आकर खड़ी रही. मुझे पहली बार ऐसा लगा कि उसे यहीं ऐसे ही बहुत पहले से होना चाहिए था और अभी इसे दर्ज करते हुए यह इच्छा मेरे भीतर बच रहती है कि हर बारिश में वह मेरे साथ हो.



''एक बिंदु हो, प्यार हो, आदमी जान लड़ा देगा.'' मैं उस बिंदु पर एकाग्र होने की बजाय छिटक जाता रहा हूँ. मुझे उसे देखना चाहिए. वहां रहना चाहिए.

 


 


 



 

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