Monday, September 30, 2013

बच्चा क़ाबिल बनो क़ाबिल. कामयाबी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी....



'कौन कमबख्त बर्दाश्त करने के लिए पीता है'
भारतीय सिनेमा तीन मई, 2013. को सौ साल का हो चुका है.इस मौके पर पाठकों के लिए  हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग. बीबीसी के लिए ये संवाद चुने वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे ने.
 
1. फ़िल्म रोटी (1941)
सड़क पर एक भूखा इंसान भीख माँग रहा है लेकिन उसकी कोई मदद नहीं करता.
नायक- रोटी माँगने से नहीं मिले तो छीनकर ले लो....मार कर ले लो.
2. रोटी (1941)
एक मुसलमान (शेख मुख़्तार) रेलवे स्टेशन पर खड़ा है और एक व्यक्ति चाय बेच रहा है- हिंदू चाय एक आना... शेख मुख़्तार चाय पीता है. उधर से दूसरा आदमी- मुस्लिम चाय एक आना करके चाय बेचता है.शेख मुख़्तार उससे भी चाय ख़रीदता है पर उसकी गर्दन पकड़ लेता है.
शेख मुख़्तार- एक ही चाय दो नाम से क्यों बेच रहे हो ?
3.सिकंदर (1942)
जहाँ पोरस की सेना सिकंदर से हार जाती है.
सिकंदर ( पृथ्वीराज कपूर)- तुम्हारे साथ क्या सुलूक किया जाए?
पोरस ( सोहराब मोदी) जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है.
4. दहेज (1949)
लालची ससुराल वाले हीरोइन से दहेज की माँग करते रहते हैं
पिता (पृथ्वीराज कपूर)- देख बेटी मैं सारा सामान लाया हूँ. तू कागज़ से मिलाकर देख हर एक चीज़ लाया हूँ
पुत्री- पिताजी आप एक चीज़ लाना भूल गए.
पिता-क्या
पुत्री- कफन
(
और वह मर जाती है क्योंकि लोभी ससुराल की न रुकने वाली माँगों के कारण वो ज़हर खा चुकी थी)
5. आवारा (1951)
नायक पर मुकदमा चल रहा है.
नायक- जज साहब, मै जन्म से अपराधी नहीं हूं. मेरी माँ चाहती थी कि मैं पढ़ लिखकर वकील बनूँ, जज बनूँ परंतु हमारी बस्ती से एक गंदा नाला गुज़रता है जिसमें अपराध के कीड़े बहते हैं. मेरी फिक्र छोड़िए, मुझे सज़ा दीजिए परंतु इन मासूम बच्चों को बचा लीजिए ( अदालत की ऊपरी गैलरी में बच्चे भी बैठे हैं)
6. आवारा (1951)
नायक राजकपूर आवारा हैं. नायिका के संरक्षक उसे पैसे देकर नायिका के जीवन से दूर जाने को कहते हैं. दर्शक जानते हैं कि फिल्म में वे पिता-पुत्र हैं.
नायक- मैं अपने आपको गिरा हुआ, नीच और कमीना समझता था परंतु आप तो मेरे भी बाप निकले.
7. आवारा (1951)
नायक बचपन में ही अपनी बीमार और भूखी माँ के लिए रोटी चुराते हुए पकड़ा गया है. जेल में नायक को रोटी दी गई है.
राजकपूर- यह कमबख़्त रोटी बाहर मिल जाती तो मैं बार-बार भीतर ( जेल) क्यों आता.
(
इसी संवाद से प्रेरित मनमोहन देसाई ने राजेश खन्ना के साथ रोटी फ़िल्म बनाई)
8. आवारा (1951)
जज रघुनाथ के संरक्षण में पली नरगिस भी वकील है. वो आवारा राजू से प्यार करती है जिस पर क़त्ल का आरोप है
नरगिस- मेरा दिल कहता है कि राजू बेगुनाह है
जज- दिल की बात अदालत नहीं मानती
नरगिस- मेरे दिल की अदालत पर क़ानून नहीं चलता
क्लामेक्स में नायक सज़ा सुनने के बाद
राजू- जज रघुनाथ मेरा असली मुकदमा तो आपके दिल की अदालत में चल रहा है. मुझे फैसले का इंतज़ार है.
9. हमलोग (1952)
ग़रीब लोगों की बस्ती है और थोड़े से तेल वाला दिया जल रहा है.
बलराज साहनी का साथी- जिस दिए में तेल कम है वो कब तक चलेगा.
बलराज साहनी- जब तेल ख़त्म होगा तो सुबह हो जाएगी
10. श्री 420 (1954)
ईमानदार नायक की प्रेमिका का नाम विद्या है और उसे बेइमानी के रास्ते पर ले जाने वाली नादिरा का नाम माया है.
सेठ सोनाचंद- राज अब तुम्हें विद्या की ज़रूरत नहीं माया की ज़रूरत है
11. जागते रहो (1956)
गाँव का सीधा-साधा आदमी प्यासा भटक रहा है और आधी रात को एक इमारत में पानी पीने जाता है. चोर समझ कर उसका पीछा किया जाता है.
पूरी फ़िल्म में नायक खामोश है. अंत में वो पानी की टंकी पर चढ़कर एक संवाद बोलता है.
राज- मैं गाँव का सीधा आदमी काम की तलाश में आपके शहर आया और आपने मुझे क्या सिखाया कि दूसरों की छाती पर पैर रखकर चल सको तो चलो.
12. देवदास (1956)
नदी किनारे देवदास और पारो मिल रहे हैं. पारो ग़रीब है लेकिन उसका आत्मसम्मान बड़ा है
दिलीप कुमार (देवदास)- इतना अंहकार...जानती हो चांद के चेहरे पर भी दाग है. मैं तुम्हारे माथे पर दाग बना देता हूँ ( वो मारता है)
13. देवदास (1956)
दिलीप कुमार- कौन कम्बख़्त बर्दाश्त करने के लिए पीता है. मैं तो पीता हूँ कि बस सांस ले सकूं.
14. देवदास (1956)
चुन्नीबाबू (मोतीलाल)- थोड़ा सा ख़ुश रहने के लिए अपने आपको धोखा देना पड़ता है
15. नया दौर (1957)
एक कस्बे के तांगेवाले नई बस से पहले पहुंचने के लिए सड़क बनाते हैं. अमीर लोग उन्हें रोकना चाहते हैं.
दिलीप कुमार- यह अमीर और ग़रीब का झगड़ा नहीं है बाबू. ये तो मशीन और हाथ का झगड़ा है.
16. दो बीघा ज़मीन (1953)
महाजन किसान की ज़मीन ख़रीदना चाहता है
बलराज साहनी- ज़मीन तो किसान की माँ है हुज़ूर. भला कोई अपनी माँ को बेचता है.
17. अनाड़ी (1959)
अमीर आदमी (मोतीलाल) का पर्स नीचे गिर जाता है और इससे बेख़बर वो वहाँ से चला जाता है.
बेरोज़गार नायक (राजकपूर) पर्स उठाता है लेकिन कुछ गुंडे उससे पर्स छीनना चाहते हैं. वह पिट जाता है पर पर्स नहीं देता. वो होटल में जाकर मोतीलाल का पर्स लौटाता है जहाँ अमीर लोग खा पी रहे हैं.
राज कपूर- ये लोग कौन हैं?
मोतीलाल- ये वो लोग हैं जिन्हें तुम्हारी तरह पैसों से भरे पर्स मिले और इन्होंने लौटाए नहीं.
18. मुग़ले आज़म (1960)
शिल्पकार ने मधुबाला को सफ़ेद पेंट लगाकर खड़ा किया है. बादशाह अक़बर बेटे सलीम के साथ आए हैं और तीर मारकर बुत का पर्दा हटाना है. तीर बुत को लग भी सकता है. सलीम तीर चलाता है, पर्दा हटता है. बुत की ख़ूबसूरती से सब हैरान हैं कि अनारकली जिल्लेइलाही को सलाम कहती है.
अकबर- तुम्हें तीर लग सकता था, क्यों तुम्हें ख़ौफ नहीं हुआ.
अनारकली- जिल्लेइलाही मैं अफ़साने को हक़ीकत में बदलते देखना चाहती थी इसलिए पलक भी नहीं झपकाई.
19. मुग़ले आज़म (1960)
अकबर(पृथ्वीराज कपूर)- एक बांदी हिंदुस्तान की मल्लिका नहीं बन सकती, हिंदुस्तान तुम्हारा दिल नहीं है.
सलीम (दिलीप कुमार) - मेरा दिल भी हिन्दुस्तान नहीं है जिस पर आपके हुक्म चले.
20. मुगल़े आज़म
अनारकली क़ैद में है, सलीम फ़रार है
अकबर- अनारकली हम तुझे जीने नहीं देंगे और सलीम तुम्हें मरने नहीं देगा
21. मुगल़े आज़म
अकबर हथियारों से लैस जंग पर जाने वाले हैं जहाँ बाग़ी सलीम ने हमला किया है. हर जंग पर जाने से पहले महारानी जोधाबाई अकबर को टीका लगाती है.
अकबर- आज विजय तिलक लगाते समय माँ जोधा के हाथ काँप रहे हैं. महारानी जोधाबाई के हाथ कभी नहीं काँपते थे. ( वे पूजा की थाली फेंक देते हैं)
22. जिस देश में गंगा बहती है (1961)
बच्चा एक परिंदे को घायल कर देता है. राजू परिंदे की सेवा करता है. इसके बाद लड़का आकर परिंदा माँगता है
राजू- तुम इसे जान दे नहीं सकते तो तुम्हें जान लेने का हक़ भी नहीं है
बच्चा- मैं इसे खाता हूँ, इसलिए इसे मारता हूँ
23. गंगा जमना (1962)
गाँव के गंगा ने मेहनत मज़दूरी करके अपने छोटे भाई को शहर में पढ़ाया है और वो पुलिस अफ़सर बनकर गाँव आया है. जबकि गंगा अन्याय से तंग आकर डाकू बन गया है और शादी कर ली है. गंगा (दिलीप कुमार) की पत्नी वैजयंती माला छोटे भाई से कहती है.
वैजयंतीमाला- देवरजी अपनी भौजाई के लिए कंगन तो नहीं लाए पर भैया के लिए हथकड़ी लेकर आए हो.
24. संगम (1964)
राजेंद्र कुमार से प्यार करने वाली राधा (वैजयंतीमाला) की शादी राजकपूर से राजेंद्र कुमार ने ही कराई है. स्विट्ज़रलैंड में वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार की मुलाकात होती है.
वैजयंतीमाला- जो ख़ुद नहीं कर सकते दूसरों की पूजा बिगाड़ने का उन्हें अधिकार नहीं. ( उसी समय झरने पर इंद्रधनुष का शॉट आता है)
25. गाइड

देव आनंद की मृत्यु का क्षण है. वे अपनी छवि से बात कर रहे हैं
देव आनंद- तुम अहंकार हो, तुम्हें मरना होगा, मैं आत्मा हूं, मैं अमर हूं.
26. वक्त (1965): निर्माता- बीआर चोपड़ा, निर्देशक- यश चोपड़ा
संदर्भ- जब राजकुमार को उनका बॉस चिनॉय सेठ (मदन पुरी) धमकी देता है तो राजकुमार उससे कहते हैं.
राजकुमार:चिनॉय सेठ. जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते.
27. मेरा नाम जोकर (1970): निर्देशक- राज कपूर
राजू (राज कपूर) ने पद्मिनी की कला को मांजा है लेकिन जब पद्मिनी को फिल्मों में काम मिलने लगा है तो वो राजू को अनदेखा करती है. ट्रेन में राजू खिड़की के सामने खड़ा है.
पद्मिनी: अंधेरे में क्या देख रहे हो
राजू (राज कपूर): स्टेज की चकाचौंध से बाहर आने पर अंधेरे में साफ दिखाई देता है.
28. मेरा नाम जोकर (1970): निर्देशक- राज कपूर
संदर्भ- राजेंद्र कुमार निर्माता हैं और वो राज कपूर से बात कर रहे हैं.
राजेंद्र कुमार: क्या तुम मीनू (पद्मिनी) से प्यार करते हो.
राज कपूर- सवाल ये नहीं, सवाल ये होना चाहिए कि क्या मैं प्रेम करता हूँ...जवाब है कि मैं नदी, पहाड़, फूल, पत्थरों सबसे प्यार करता हूँ.
राजेंद्र कुमार- क्या इन सब में मीना नाम की लड़की भी है.
राज कपूर- आप बेफिक्र रहें, मैं रास्ते में नहीं आऊँगा.
29. आनंद (1971): निर्देशक- राज कपूर
संदर्भ- आनंद यानी राजेश खन्ना को कैंसर है जबकि बाबूमोशाय यानी अमिताभ बच्चन डॉक्टर हैं
राजेश खन्ना: बाबू मोशाय.. ज़िंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ में है जहाँपनाह. उसे न आप बदल सकते हैं न मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है. कब कौन कैसे उठेगा ये कोई नहीं बता सकता है.
30. आनंद (1971): निर्देशक- राज कपूर
अमिताभ बच्चन: मौत तू एक कविता है. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको. डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे, ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद उफ़क तक पहुँचे. दिन अभी पानी में हो रात किनारे पर, न अंधेरा ना उजाला हो. न अभी रात न दिन. जिस्म जब खत्म हो और रूह को जब साँस आए...मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको.
31. आनंद (1971): निर्देशक- ऋषिकेश मुखर्जी
राजेश खन्ना: बाबू मोशाय ज़िंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए
32. पाकीज़ा (1972): निर्देशक- कमाल अमरोही
संदर्भ- राजकुमार, रेलगाड़ी में सोई हुई मीना कुमारी के पैर देखते हैं और एक खत उनके नाम छोड़ जाते है. जिसमें लिखा होता है.
राजकुमार: आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं. इन्हें ज़मीन पर मत रखिए. ये मैले हो जाएंगे.
33. बॉबी(1973): निर्देशक- राज कपूर
प्रेम चोपड़ा: प्रेम नाम है मेरा. प्रेम चोपड़ा.
34. बदला (1974)
ये एक एक्शन फिल्म है, जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा भीड़ को कहते हैं, खामोश.
आज भी सिन्हा साहब वही डायलॉग दोहराते रहते हैं.
35. दीवार (1975): निर्देशक- यश चोपड़ा, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- विजय (अमिताभ बच्चन) एक अंडरवर्ल्ड डॉन है. उसका छोटा भाई रवि (शशि कपूर) पुलिस इंस्पेक्टर है जो विजय से आत्मसमर्पण के काग़ज़ पर साइन करने को कहता है.
इस पर विजय (अमिताभ बच्चन)- जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरी मां को गाली देकर नौकरी से निकाल दिया. जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ पर लिख दिया था कि मेरा बाप चोर है. उसके बाद तुम जिस काग़ज़ पर कहोगे मैं साइन कर दूंगा.
36. दीवार (1975): निर्देशक- यश चोपड़ा, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- डाबर सेठ (इफ्तिखार) अपना काम करवाने के लिए विजय (अमिताभ बच्चन) को पैसे टेबल पर फेंक कर देता है.
इसके जवाब में विजय (अमिताभ बच्चन): डाबर साहब बहुत बरस पहले आप रेस खेलने जाया करते थे और रास्ते में एक जगह रुककर जूते पॉलिश कराते थे. मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता.
37. दीवार (1975): निर्देशक- यश चोपड़ा, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- मां (निरूपा रॉय) बीमार है. विजय (अमिताभ बच्चन) उसकी सेहत की दुआ मांगने मंदिर जाता है. और भगवान से मुखातिब हुए कहता है.
विजय (अमिताभ बच्चन): आज खुश तो बहुत होगे तुम. जिसने आज तक तुम्हारे मंदिर की सीढ़ियां नहीं चढ़ी, जिसने कभी तुम्हारे सामने सर नहीं झुकाया. जिसने कभी तुम्हारे आगे हाथ नहीं जोड़े, वो आज तुम्हारे सामने हाथ फैलाए खड़ा है. बहुत खुश होगे तुम.
38. दीवार (1975): निर्देशक- यश चोपड़ा, लेखक- सलीम जावेद
1975 में रिलीज़ हुई फिल्म शोले के कई डायलॉग्स ने तहलका मचा दिया. अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे, इतना सन्नाटा क्यों है भाई जैसे संवाद आज भी लोगों की ज़ुबां पर हैं.
संदर्भ- विजय (अमिताभ बच्चन) ने तस्करी के ज़रिए काफी पैसा कमा लिया है. वो अपने छोटे भाई रवि (शशि कपूर) जो कि एक पुलिस इंस्पेक्टर है, से अपनी अमीरी का बखान करते हुए और रवि की सरकारी नौकरी पर कटाक्ष करते हुए कहता है.
विजय (अमिताभ बच्चन): आज मेरे पास बंगला है. गाड़ी है. बिल्डिंग है. बैंक बैलेंस है. तुम्हारे पास क्या है.
रवि (शशि कपूर): मेरे पास मां है.
39. शोले (1975): निर्देशक- रमेश सिप्पी, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- जब डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) के आदमी जय और वीरू से मात खाकर वापस लौट आते हैं तो
गब्बर सिंह (अमजद खान): यहां से पचास-पचास कोस दूर जब बच्चा रात में रोता है तो मां कहती है, बेटा सो जा. सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा. और ये तीन हरामज़ादे गब्बर सिंह का नाम पूरा मिट्टी में मिलाय दिए.
40. शोले (1975): निर्देशक- रमेश सिप्पी, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- बसंती (हेमा मालिनी) डाकुओं से बचकर तांगे में भाग रही है. और अपनी घोड़ी से बोलती है.
बसंती (हेमा मालिनी): चल धन्नो भाग. आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है.
41. शोले (1975): निर्देशक- रमेश सिप्पी, लेखक- सलीम जावेद
संदर्भ- वीरू (धर्मेंद्र) पानी की टंकी पर खड़ा है, नीचे भीड़ खड़ी हुई है.
वीरू (धर्मेंद्र): गांव वालो, मेरा इस बसंती से लगन होने वाला था. लेकिन इस बुढ़िया ने बीच में भांजी मार दी. अब मैं जी नहीं पाऊंगा. मैं यहां से कूद कर सूसाइड कर लूंगा. सूसाइड. फिर पुलिस कमिंग. बुढ़िया गोइंग जेल. इन जेल. बुढ़िया चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड पीसिंग.
42. डॉन (1978): निर्देशक- चंद्रा बारोट, लेखक- सलीम जावेद
अमिताभ बच्चन: डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
43. प्रेमरोग (1982): निर्देशक- राज कपूर
संदर्भ- ज़मींदार (शम्मी कपूर), देवधर (ऋषि कपूर) को अपने खानदानी रस्मो रिवाज का वास्ता देकर अपनी विधवा भतीजी से भाग कर शादी करने की सलाह देते हैं. ताकि उन पर कोई आंच ना आ सके. इसी बातचीत के दौरान घर की बिजली चली जाती है और वो मोमबत्ती की रोशनी में वो देवधर से बातें करते हैं. वो देवधर को भागने में सहायता देने की भी बात करते हैं.
इस पर देवधर (ऋषि कपूर) कहता है: नहीं राजा साहब. मैं चोरी छिपे नहीं भागूंगा. ये बात सिर्फ एक देवधर या मनोरमा की नहीं है. ये लड़ाई है पूरी समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ है. ये धर्मयुद्ध है. (संवाद खत्म होते ही बिजली आ जाती है)
44. प्रेमरोग (1982): निर्देशक-राज कपूर
संदर्भ- ज़मींदार (शम्मी कपूर) का भाई (कुलभूषण खरबंदा) अपनी विधवा बेटी के पुनर्विवाह के खिलाफ है. उसकी बेटी का जेठ (रज़ा मुराद) भी इस विवाह के खिलाफ है. खूनी संघर्ष में भाई (कुलभूषण खरबंदा) की मौत हो जाती है. ज़मींदार (शम्मी कपूर) उसके मृत शरीर की आंखे बंद करते हुए कहते हैं
शम्मी कपूर: काश तुम्हारी आंखें पहले खुल जातीं.
45. नमक हलाल (1982): निर्देशक- प्रकाश मेहरा
अमिताभ बच्चन: यू सी सर. आई कैन टाक इंग्लिश..आई कैन वाक इंग्लिश. बिकाज इंग्लिश इज़ अ फनी लैंग्वेज, भैरव बिकम्स बैरन एंड बैरन बिकम्स भैरों बिकाज देअर माइंड्स आर वेरी नैरो.
46. सौतन (1984): निर्देशक- सावन कुमार टाक
प्रेम चोपड़ा: मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं.
47. मिस्टर इंडिया (1987) निर्देशक- शेखर कपूर
मोगेंबो (अमरीश पुरी): मोगेंबो खुश हुआ.
48. शहंशाह (1988), निर्देशक- टीनू आनंद
अमिताभ बच्चन: रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं नाम है शहंशाह.
49. बाज़ीगर (1993): निर्देशक- अब्बास मस्तान
शाहरुख खान: कभी कभी जीतने के लिए हारना पड़ता है. हारकर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं.
50. कुछ कुछ होता है (1999): निर्देशक- करण जौहर
राहुल (शाहरुख खान): प्यार दोस्ती है. अगर वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त नहीं बन सकती तो मैं उससे कभी प्यार कर ही नहीं सकता. क्योंकि दोस्ती बिना तो प्यार होता ही नहीं. सिंपल. प्यार दोस्ती है.
51. अमर प्रेम (1972): निर्देशक- शक्ति सामंत
राजेश खन्ना: रो मत पुष्पा. आई हेट टियर्स.
52. रोटी कपड़ा और मकान (1974) : निर्देशक- मनोज कुमार
मनोज कुमार: तुम्हारी रामायण में राम नहीं मेरी रामायण में सीता नहीं.
53. रोटी कपड़ा और मकान (1974) : निर्देशक- मनोज कुमार
मनोज कुमार: ये मत सोचो कि देश ने तुमको क्या दिया. ये सोचो कि तुमने देश को क्या दिया.
54. शोले (1975): निर्देशक- रमेश सिप्पी, लेखक- सलीम जावेद
गब्बर सिंह: जो डर गया समझो मर गया.
55. अमर अकबर एंथनी (1977): निर्देशक-मनमोहन देसाई
अमिताभ बच्चन- ऐसा तो आदमी दोइच्च टाइम भागता है. ओलंपिक की रेस हो या पुलिस का केस. तुम काए को भागता है भाई.
56. विश्वनाथ (1978): निर्देशक- सुभाष घई
एंथनी गोंज़ाल्विस (अमिताभ बच्चन): ऐसा तो आदमी दोइच्च टाइम भागता है. ओलंपिक की रेस हो या पुलिस का केस. तुम काए को भागता है भाई. (फिल्म अमर अकबर एंथनी से)
शत्रुघ्न सिन्हा: जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं और जिस राख में बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं.
57. फिल्म त्रिशूल (1978): निर्देशक- यश चोपड़ा
पिता पुत्र के संघर्ष की कहानी में पुत्र (अमिताभ बच्चन) पिता (संजीव कुमार) से कहता है.
अमिताभ बच्चन- आज आपके पास आपकी सारी दौलत सही लेकिन आपसे बड़ा ग़रीब मैने ज़िंदगी में नहीं देखा.
58. फिल्म: कालिया (1981), निर्देशक- टीनू आनंद
अमिताभ बच्चन: हम जहाँ खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरु होती है.
59. फिल्म: जाने भी दो यारो (1983), निर्देशक- कुंदन शाह
स्टेज पर महाभारत नाटक में कुछ पात्र अनचाहे ही पहुँच जाते हैं. वे नाटक का हिस्सा नहीं है.
बिल्डर- द्रोपदी तेरे अकेले की नहीं है हम सब शेयरहोल्डर हैं.
60. शराबी (1984) : निर्देशक- प्रकाश मेहरा
अमिताभ बच्चन: भई, मूंछे हों तो नत्थूलाल जी जैसी हों, वर्ना ना हों.
61. शराबी (1984): निर्देशक- प्रकाश मेहरा
अमिताभ बच्चन: आज इतनी भी मय नहीं मयख़ाने में जितनी पीकर छोड़ दिया करते थे हम पैमाने में.
62. इंसानियत के दुश्मन (1987)
धर्मेंद्र: इलाके कुत्ते और बिल्लियों के होते हैं. शेरों के नहीं. शेर जहां जाते हैं, वहीं उनकी दहशत होती है.
63. तेज़ाब (1988): निर्देशक- एन चंद्रा
अनिल कपूर: प्यार तो रहेगा. उसके दिल में नफरत की तरह, मेरे दिल में नासूर की तरह.
64. दामिनी (1993): निर्देशक- राजकुमार संतोषी
गोविंद (सनी देओल) नायिका (मीनाक्षी शेषाद्रि) का वकील है जिसे अपराधियों का वकील (अमरीश पुरी) कुछ गुंडे लाकर डराना चाहता है. गुंडे गोविंद (सनी देओल) को हथियार दिखाते हैं जिस पर सनी देओल: चड्ढा समझाओ इसे. ऐसे खिलौने बाज़ार में बहुत मिलते हैं. लेकिन इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए ना, वो दुनिया के किसी बाज़ार में नहीं मिलता. मर्द उसे लेकर पैदा होता है. और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है तो आदमी उठता नहीं उठ जाता है.
65. दामिनी (1993): निर्देशक- राजकुमार संतोषी
सनी देओल: ये अदालत इंसाफ नहीं देती जज साहब. देती है तो बस तारीख पर तारीख
66. तिरंगा (1993): निर्देशक- मेहुल कुमार
नाना पाटेकर: अपना तो उसूल है, पहले लात, फिर बात उसके बाद मुलाकात
67. तिरंगा (1993):निर्देशक- मेहुल कुमार
नाना पाटेकर: 1500 की छोटी नौकरी करने वाला ही तुझे 150 रुपए का कफन देगा.
68. करण अर्जुन (1995): निर्देशक- राकेश रोशन
राखी: मेरे करण अर्जुन आएंगे. धरती का सीना फाड़कर खाएंगे. आकाश चीर कर आएंगे. मेरे करण अर्जुन आएंगे.
69. रिहाई (1997): निर्देशक- अरुणा राजे
जब गांव की पंचायत हेमा मालिनी को गांव छोड़ने का आदेश देती है तो
एक बूढ़ी औरत: औरतों से सीता बनने की आशा करने वाले पुरुष क्या खुद राम की तरह काम करते हैं.
70. लगान (2001): निर्देशक- आशुतोष गोवरिकर
नायक भुवन गांव के लोगों में एकता लाना चाहता है. इस पर भुवन का दोस्त: तू गीली चुटकी से नमक पकड़ रहा है भुवन.
71. लगान (2001): निर्देशक- आशुतोष गोवरिकर
आमिर खान: चूल्हे से रोटी निकालने के लिए चिमटे का मुंह तो जलाना ही पड़ता है.
72. लगान (2001): निर्देशक- आशुतोष गोवरिकर
यशपाल: कटती हुई मुर्गी का दर्द तो मुर्गी ही जाने. खाने वाला क्या जाने.
73. देवदास (2002): निर्देशक- संजय लीला भंसाली
देवदास की माँ उससे घर छोड़ने के लिए कहती है. पारो की शादी हो चुकी है.
देवदास(शाहरुख़ खान): बाबूजी ने कहा पारो को छोड़ दो, पारो ने कहा शराब छोड़ दो, माँ ने कहा घर छोड़ दो, किसी दिन कोई कहेगा ये दुनिया छोड़ दो.
74. वांटेड (2009)
सलमान खान: एक बार मैने कमिटमेंट कर दी तो फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता.
75. बॉडीगार्ड (2011)
सलमान खान: मुझ पर एक एहसान करना कि मुझ पर कभी कोई एहसान मत करना.
76. श्री 420 (1954): निर्देशक- राज कपूर
संदर्भ- छोटे शहर का ईमानदार नायक गरीबी से तंग आकर भ्रष्ट हो गया है. वह बढ़िया सूट पहनकर खड़ा है लेकिन आइने में उसकी छवि में वो फटे पुराने कपड़े पहना है. जापानी जूता,रुसी टोपी,छवि के चेहरे पर व्यंग्य की मुस्कान है.
शीशे में राज की छवि कहती है- वाह राज क्या ठाठ है. तुम्हारे ये शानदार सूट, मंहगी टाई, क्या चमकदार जूते हैं. वाह! भाई तुमने सच ही कहा था कि एक दिन बम्बई पर राज करोगे.
राज असलियत में - मेरा दम घुट रहा है.
77. मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955) : निर्देशक- गुरूदत्त
ललिता पवार अपने बेटी के लिए एक किराए का पति चुनना चाहती है जो बाद में उसे तलाक दे दे. ग़रीब आदमी है
ललिता पवार - तुम्हारी बातों से लगता है कि तुम कम्युनिस्ट हो
गुरुदत्त - जी नहीं मैं कम्यूनिस्ट नहीं...कार्टूनिस्ट हूं मुझसे क्या डरना .
78. शोले (1975): निर्देशक- रमेश सिप्पी
बसंती (हेमा मालिनी) तांगा चलाता हुए जय और वीरू को कई बार अपना नाम बता चुकी है. उसके बाद भी जब वो कहती है कि "तुमने ये नहीं पूछा कि हमारा नाम क्या है?" तब जय (अमिताभ बच्चन) : तुम्हारा नाम क्या है बसंती.
79. कालीचरण (1976): निर्देशक- सुभाष घई
अजीत: सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है.
80. अमर अक़बर एंथोनी (1977): निर्देशक- मनमोहन देसाई
शराबी एंथनी गुंडों से पिटकर आया है. आईने के सामने खड़े होकर अपने प्रतिबिंब से बात कर रहा है.
एंथनी (अमिताभ बच्चन): ए. जाके देख तेरे को कितना मारा है. आइने में अपना थोबड़ा देख. अख्खा इडियट लग रहा है. तेरे को अपुन कितनी बार बोला दारू नई पीने का. दारू बहुत खराब चीज़ है. पन, तुम अपना सुनतईच्च किधर है.
81. सत्ते पे सत्ता (1981)
अमिताभ बच्चन - दारु नहीं पीने का. दारू बहुत खराब चीज़ है. दारू पीने से लीवर ख़राब हो जाता है. अपुन पीता नहीं है. वो एक दिन दोस्त की शादी में गया तो खाली चार बाटली पी लिया.
82. राम तेरी गंगा मैली (1985): निर्देशक- राज कपूर
पहाड़ की मासूम लड़की शहरी गुंडो से भागती हुई शमशान घाट पहुंचती है. पीछे शव जल रहा है.
चौकीदार कहता है: बेटी तुम्हें मुर्दों से डर नहीं लगता?
नायिका (मंदाकिनी): डर तो ज़िंदा लोगों से लगता है, उनकी हवस से लगता है. बेचारे मुर्दों से क्या डरना...
83. राम तेरी गंगा मैली (1985): निर्देशक- राज कपूर
नेताजी बनारस से गाने वाली गंगा नामक लड़की ले आए और मालूम पड़ने पर कि यह उनके होने वाले दामाद की प्रेमिका रही है, लड़की को लाने वाले सईद जाफरी से कहते हैं - गंगा को कलकत्ता से आज रात ही वापस बनारस ले जाना.
सईद जाफरी - गंगा कभी कलकत्ता से बनारस की ओर नहीं बहती, वो बनारस से कलकत्ता ही आती है.
84. मैंने प्यार किया (1989): निर्देशक- सूरज बड़जात्या
मोहनीश बहल: एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते.
85. अग्निपथ (1990): निर्देशक- मुकुल एस आनंद
अमिताभ बच्चन: विजय दीनानाथ चौहान. पूरा नाम. बाप का नाम दीनानाथ चौहान. मां का नाम सुहासिनी चौहान. गांव मांडवा. उमर 36 बरस नौ महीने तीन दिन और ये सोलहवां घंटा चल रहा है.
86. सौदागर (1991): निर्देशक- सुभाष घई
राजकुमार: जानी. हम तुम्हें मारेंगे और ज़रूर मारेंगे. लेकिन उस वक्त बंदूक भी हमारी होगी. गोली भी हमारी होगी और वक़्त भी हमारा होगा.
87. तिरंगा (1993): निर्देशक- मेहुल कुमार
संदर्भ: एक ईमानदार पुलिस अफसर की हत्या हो जाती है. उसे शासकीय सम्मान से विदाई दी जाती है. इस अवसर पर दिल्ली से नेता आए हैं.
नेताजी: एक ईमानदार साहसी अफसर मारा गया है, दिल्ली से जांच के लिए टीम आएगी.
नाना पाटेकर - दिल्ली सिर्फ देखती रहती है, इमारतें ढह जाती है , लोग मारे जाते हैं दिल्ली ख़ामोश देखती रहती है.
88. दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1996): निर्देशक- आदित्य चोपड़ा
राज (शाहरुख खान): बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें तो होती रहती हैं सैन्योरीटा.
89. यशवंत (1997)
नाना पाटेकर - साला एक मच्छर, बस एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है. एक मच्छर काटा कि खेल खत्म.
90. दिल तो पागल है (1997): निर्देशक- यश चोपड़ा
करिश्मा कपूर: मैंने दोस्ती को प्यार समझने की भूल की तुम प्यार को दोस्ती समझने की भूल कर रही हो.
91. मृत्युदंड (1997): निर्देशक- प्रकाश झा
माधुरी दीक्षित अपने पति (अयूब खान) से: पति हैं, पति ही बने रहिए. परमेश्वर बनने की कोशिश मत कीजिए.
92. रंग दे बसंती(2006): निर्देशक- राकेश ओमप्रकाश मेहरा
सिद्धार्थ: कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता. उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है.
93. चक दे इंडिया (2007): निर्देशक- शिमित अमीन
कबीर खान (शाहरुख खान): हर टीम में सिर्फ एक ही गुंडा होता है. और इस टीम का गुंडा मैं हूं.
94. गुरू (2007): निर्देशक- मणिरत्नम
संदर्भ: जब गुरू (अभिषेक बच्चन) को अपने पर लगे वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की सफाई के लिए पांच मिनट दिए जाते हैं.
अभिषेक बच्चन: आपने मुझे पांच मिनट दिए थे ना. मैंने साढ़े चार मिनट में सब खत्म कर दिया. तीस सेकंड का मुनाफा हुआ. यही होता है बिजनेस. अब अगर आप इसके लिए भी मुझे सज़ा देना चाहें तो दे दीजिए. गुरूकांत देसाई सज़ा से नहीं डरता.
95. ओम शांति ओम (2007): निर्देशक- फराह खान
दीपिका पादुकोण: एक चुटकी सिंदूर की क़ीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू.
96. 3 इडियट्स (2009): निर्देशक- राजकुमार हीरानी
आमिर खान: बच्चा क़ाबिल बनो क़ाबिल. कामयाबी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी.
97. माइ नेम इज़ खान (2010): निर्देशक- करण जौहर
शाहरुख खान: माइ नेम इज़ ख़ान एंड आइ एम नॉट ए टेरोरिस्ट.
98. दबंग (2010): निर्देशक- अभिनव कश्यप
सोनाक्षी सिन्हा - थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्यार से लगता है.
99. द डर्टी पिक्चर (2011): निर्देशक- मिलन लूथरिया
निर्माता नई नायिका का समर्थन करते हुए: पब्लिक सामान देखती है, दुकान नहीं
100. द डर्टी पिक्चर(2011): निर्देशक- मिलन लूथरिया
विद्या बालन: फिल्म सिर्फ तीन वजहों से चलती है. इंटरटेनमेंट, इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट

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