चल तू अपनी राह पथिक , चल , तुझको विजय पराजय से क्या ?
भंवर उठ रहे हैं सागर में ,
मेघ घुमरते हैं अम्बर में ,
तुझको तो केवल चलना है , चलना ही है , फिर हो भय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक , चल , तुझको विजय पराजय से क्या ?
इस दुनिया में कहीं न सुख है ,
इस दुनिया में कहीं न दुःख है ,
जीवन एक हवा का रुख है ,
होने दे होता है जो कुछ , इस होने का हो निर्णय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक , चल , तुझको विजय पराजय से क्या ?
अरे थक गया ! फिर बढ़ता चल ,
उठ , संघर्षो से अड़ता चल ,जीवन विषम पथ चलता चल ,
अड़ा हिमालय हो यदि आगे ,’चढूं के लौटूं ’ यह संशय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक , चल , तुझको विजय पराजय से क्या ?
कोई रो रो कर सब खोता ,
कोई खोकर सुख में खोता ,
दुनिया में ऐसा हीं होता ,
जीवन का क्रय मरण यहाँ पर , निश्चित ध्येय यदि फिर छय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक , चल , तुझको विजय पराजय से क्या ?
-----------------------ओशो
No comments:
Post a Comment