Wednesday, January 12, 2011

आत्मविस्तार के सिवा मित्रता का और कोई अभिप्राय नहीं ......

और फिर एक युवक ने पूछा –मित्रता के बारे मे बताएं –

उसने जवाब दिया

तुम्हारी जरूरतों का जवाब है तुम्हारा मित्र।

वही फसल है तुम्हारी जिसे बोते हो तुम प्यार से ,

और काटते हो ध्न्यवाद सहित ।

वह थाल है तुम्हारे भोजन का ,

और कमरे का कोना है ,आराम का ।

तुम आते हो उसके पास क्यूंकि भूखे हो तुम ,

और ढूंढते हो उसे ,क्यूंकि शांति चाहते हो तुम ।



जब अपने विचार प्रकट करता हो तुम्हारा मित्र

तो डरो मत ,प्रकट होने दो अपनी असहमति ,

और न ही रोको अपनी सहमति को ।



और जब वह मौन हो तो

तुम्हारा हृदय उसकी अनुभूति को चूके नहीं ,



मित्रता मे विचार ,आकांक्षाएँ ,अपेक्षाएँ ,

सभी का जन्म होता है

और बाँट ली जाती हैं आपस मे ,

सहर्ष ,बिना बोले ही ।



दुखी मत होना, मित्र से बिछुड़ते हुए

क्योंकि उसमे ‘वह ‘ जो तुम्हें सबसे अधिक प्रिय था ,

अब और स्पष्ट हो जाएगा उसकी अनुपस्थिति मे ,

जैसे मैदान मे उतरने के बाद पर्वतारोही के लिए

स्पष्ट हो उठता है पहाड़।



आत्मविस्तार के सिवा मित्रता का

और कोई अभिप्राय नहीं होना चाहिए ।



प्रेम यदि स्वयं के रहस्योद्घाटन

के सिवा कुछ और ढूँढना चाहता है ,

तो यह प्रेम नहीं बल्कि एक जाल है,

जिससे व्यर्थ की वस्तुएँ ही पकड़ मे आती हैं ।



तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ तुम्हारे मित्र के लिए हो।



यदि उसे तुम्हारे जीवन –प्रवाह का अपकर्ष

जानना ही है तो उसे अपना ऊत्कर्ष भी जानने दो ।

वह कैस मित्र है,

जिसे तुम समय काटने के लिए ढूंढते हो ?

अपने समय को सार्थक बनाने के लिए ही उसे ढूंढो ।



क्योंकि इससे तुम्हारी अपेक्षाएँ पूर्ण होंगी ,

लेकिन तुम्हारा खालीपन नहीं ।



मित्रता की मिठास मे होगी मुस्कान ,

और होगा सुख का आदान –प्रदान ।



इन छोटी- छोटी खुशियों के ओस – कणों से ही ,

हृदय जाग जाता है ,

और फिर से तरोताजा हो जाता है ।

- “The Prophet” खलील जिब्रान

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