Monday, January 31, 2011

प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता ,न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है ........




तब अलमित्रा ने कहा ,
हमे प्रेम के विषय मे बताओ ।

तब उसने अपना सिर उठाया ,
और उन लोगों की ओर देखा ।
उन सबों पर शांति बरस पड़ी ,
फिर उसने गंभीर स्वर मे कहा :

प्रेम का संकेत मिलते ही अनुगामी बन जाओ उसका ,
हालांकि उसके रास्ते कठिन और दुर्गम हैं ।
और जब उसकी बाहें घेरे तुम्हें ,समर्पण कर दो ,
हालांकि उसके पंखों मे छिपे तलवार ,
तुम्हें लहूलुहान कर सकते हैं ,फिर भी ।
और जब वह शब्दों मे प्रकट हो ,उसमे विश्वास रखो ,
हालांकि उसके शब्द तुम्हारे सपनों को तार-तार कर सकते हैं
जैसे उत्तरी बर्फीली हवा उपवन को
बर्बाद कर देती है ।

क्योंकि प्रेम यदि तुम्हें सम्राट बना सकता है ,
तो तुम्हारा बलिदान भी ले सकता है ।
प्रेम कभी देता है विस्तार ,
तो कभी काट देता है पर ।

जैसे वह ,तुम्हें शिखर तक उठता है
और धूप मे काँपती कोमलतम शाखा तक को बचाता है ,
वैसे ही ,वह तुम्हारी गहराई तक उतरता है
और जमीन से तुम्हारी जड़ो को हिला देता है ,
अनाज के पुला की तरह ,
वह तुम्हें ईकठ्ठा करता है अपने लिए ,
वह तुम्हें यंत्र मे डालता है ताकि
तुम अपने आवरण के बाहर आ जाओ ।
वह छानता है तुम्हें ,
और तुम्हारे आवरण से मुक्त करता है तुम्हें ,
वह पिसता है तुम्हें ,उज्ज्वल बनाने को ।
वह गूँथता है तुम्हें ,नरम बनाने तक
और तब तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि को सौपता है ,
जहां से तुम ईश्वर की पवित्र पावन भोज की
पवित्र रोटी बन सकते हो !

प्रेम यह सब तुम्हारे साथ करेगा ,
ताकि तुम हृदय के रहस्यों को समझ सको ,
और इस ज्ञान से ही तुम ,
अस्तित्व के हृदय का अंश हो जाओगे ।

लेकिन यदि तुम भयभीत हो ,
और तुम प्रेम मे सिर्फ शांति और आनंद चाहते हो ,
तो तुम्हारी लिए यही अच्छा होगा की
अपनी निजता को ढ़क लो
और प्रेम के उस यातना स्थल से बाहर चले जाओ ,
चले जाओ ऋतुहीन उस दुनिया मे ,
जहां तुम्हारी हंसी मे
तुम्हारी सम्पूर्ण खुशी प्रकट नहीं होती ,
न ही तुम्हारे रुदन मे तुम्हारे सम्पूर्ण आँसू ही बहते हैं

प्रेम न तो स्वयं के अतिरिक्त कुछ देता है
न ही प्रेम स्वयं के अलावे कुछ लेता है ,
प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता ,
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
चूकि प्रेम के लिए बस प्रेम ही पर्याप्त है ।
जब तुम प्रेम मे हो, यह मत कहो
की ईश्वर मेरे हृदय मे है ,
बल्कि कहो की ,
मैं ईश्वर के हृदय मे हूँ
यह मत सोचो की तुम प्रेम को,
राह बता सकते हो ,
बल्कि यदि प्रेम तुम्हें योग्य समझेगा ,
तो वह स्वयं तुम्हें तुम्हारा रास्ता बताएगा ,

स्वयं की परिपूर्णता के अतिरिक्त ,
प्रेम की कोई और अभिलाषा नहीं ,
लेकिन यदि तुम प्रेम करते हो ,
फिर भी इच्छाये हो ही ,
तो उनका रूपान्तरण ऐसे करो
की ये पिघल कर उस झरने की तरह बहे ,
जो मधुर स्वर मे गा रही हो रात्रि के लिए ,
करुणा के अतिरेक की पीड़ा समझने को ।
प्रेम के बोध से स्वयं को घायल होने दो ।

बहने दो अपना रक्त
अपनी ही इच्छा से सहर्ष,
सुबह ऐसे जागो कि
हृदय उड़ने मे हो समर्थ,
और अनुगृहीत हो एक और
 प्यार भरे दिन के लिए,
दोपहर विश्राम भरा और प्रेम के
भवातिरेक से समाधिस्थ हो,
और शाम को कृतज्ञतापूर्वक
घर लौट आओ ,

इसके उपरांत सो जाना है
प्रियतम के लिए
हृदय मे प्रार्थना और ओठों पर
प्रशंसा का गीत लिए हुए ।
-    खलील जिब्रान

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