अकेलेपन के अंधेरे से सीधे नहीं लडा जा सकता। यह सारभूत बिंदु है जिसे प्रत्येक को समझना चाहिए कि कुछ बुनियादी बातें हैं जो बदली नहीं जा सकती। यह बुनियादी बातों में से एक है: तुम अंधेरे से, अकेलेपन से, अलगाव के भय से सीधे नहीं लड सकते। कारण यह है कि ये सब बातें मौज़ूद नहीं हैं; ये सब किसी की अनुपस्थिति हैं, जैसे कि अंधेरा प्रकाश का अभाव है। तो सिर्फ प्रकाश लाना है और तुम बिल्कुल अंधेरा नहीं पाओगे, क्योंकि यह प्रकाश का न होना था, बस प्रकाश न होना, किसी वस्तु का नहीं, इसके होने के साथ, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसकी हस्ती है। परंतु सिर्फ इसलिए कि प्रकाश वहां नहीं था, तुमने अंधकार के होने की अवधारणा बना ली थी। तुम इस अंधकार के साथ सारा जीवन लडते रह सकते हो और तुम सफल नहीं होगे, परंतु इसे दूर करने के लिए एक छोटी सी मोमबत्ती ही काफी है। तुम्हें प्रकाश के लिए काम करना होगा क्योंकि यह सकारात्मक है, अस्तित्वगत है; यह अपने आपमें मौजूद है। और एक बार जब प्रकाश आ जाता है, जो भी इसके अभाव से था स्वत: गायब हो जाता है। अकेलापन अंधेरे की तरह है। क्योंकि तुम अपने एकाकीपन को नहीं जानते, डर लगता है। तुम अकेला अनुभव करते हो इसीलिए चिपटना चाहते हो किसी चीज से, किसी से, किसी रिश्ते से, बस यह भ्रम रखने के लिए कि तुम अकेले नहीं हो। परंतु तुम जानते हो कि तुम हो, इसीलिए पीड़ा है। एक तरफ तुम उससे चिपट रहे हो जो कि वास्तविक नहीं है, जो कि बस अस्थायी व्यवस्था है, रिश्ता, दोस्ती। और जबकि तुम रिश्ते में हो तो अपने अकेलेपन को भूलने के लिए थोडा भ्रम बना सकते हो। लेकिन यही समस्या है: हालाकि तुम एक पल के लिए भूल सकते हो कि तुम अकेले हो, बस अगले ही पल अचानक तुम्हें पता चलता है कि रिश्ते या दोस्ती में से कुछ भी हमेशा के लिए नहीं है। कल इस आदमी या इस औरत को नहीं जानते थे, तुम अजनबी थे। आज तुम दोस्त हो, आने वाले कल के बारे में कौन जानता है? आने वाले कल तुम फिर से अजनबी होगे, इसलिए पीड़ा है। भ्रम एक तरह की सांत्वना देता है, परंतु यह वास्तविकता नहीं पैदा कर सकता जिससे कि सारे डर गायब हो जाएं। यह डर का दमन करता है, इसलिए सतह पर तुम अच्छा महसूस करते हो, कम से कम तुम अच्छा लगने की कोशिश तो कर ही सकते हो। तुम खुद को अच्छा लगने का दिखावा करते हो: कैसा सुंदर रिश्ता है, कैसा निराला आदमी है या कैसी निराली स्त्री है। परंतु भ्रम के पीछे, और भ्रम इतना पतला है कि तुम इसके पीछे देख सकते हो, दिल में दर्द है, क्योंकि दिल अच्छी तरह जानता है कि कल चीजें पहले जैसी न रह सकें…और वे एक जैसी हैं भी नहीं। तुम्हारे सारे जीवन का अनुभव समर्थन करता है कि चीजें बदल रही हैं। कुछ भी स्थिर नहीं रहता है; तुम बदलते हुए संसार में किसी चीज को पकडे नहीं रह सकते हो। तुम अपनी दोस्ती को स्थायी बनाना चाहते थे परंतु तुम्हारी चाह परिवर्तन के नियम के खिलाफ थी, और वह नियम अपवाद बनने नहीं जा रहा। यह बस अपनी ही चीज़े किये चला जाता है। यह सब कुछ बदल देगा। शायद बहुत समय बाद एक दिन तुम समझ जाओगे कि यह अच्छा था कि इसने तुम्हारी नहीं सुनी, कि अस्तित्व ने तुम्हारी फिक्र नहीं की और जो भी यह करना चाहता था किये चला गया …तुम्हारी इच्छानुसार नहीं। तुम्हें इसे समझने में थोडा समय लग सकता है। तुम चाहते थे कि यह दोस्त तुम्हारा हमेशा के लिए दोस्त रहे, परंतु कल वह दुश्मन हो सकता है। या बस, तुम खो गये! और वह तुम्हारे साथ नहीं है। कोई और जगह भर सकता है जो कि बहुत ज्यादा अच्छा होगा। तब तुम अचानक महसूस करोगे कि अच्छा हुआ दूसरा वाला छूट गया; अन्यथा तुम उसके साथ अटके रह जाते। परंतु पाठ/सबक कभी भी इतना गहरा नहीं जाता कि तुम स्थायित्व के लिए कह सको। तुम इस आदमी, इस औरत के साथ स्थायित्व के बारे में कहना शुरु करो: अब वह नहीं बदलेगा। तुमने वाकई सबक याद नहीं किया है कि बदलाव बस जीवन का ताना बाना है। तुम्हें इसे समझना होगा और इसके साथ चलना होगा। भ्रम मत पैदा करो; वे मदद नहीं करने जा रहे। और हर कोई विभिन्न प्रकार के भ्रम पैदा कर रहा है। मैं एक ऐसे आदमी को जानता हूं जो कहता है, मुझे केवल पैसे पर भरोसा है। मुझे किसी और पर भरोसा नहीं है। मैंने कहा, ‘तुम एक बहुत महत्वपूर्ण बात कह रहे हो’। उसने कहा, सभी बदल रहे हैं। तुम किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। और जैसे-जैसे तुम्हारी उम्र बढती जाती है, केवल तुम्हारा पैसा ही तुम्हारा होता है। कोई परवाह नहीं करता, तुम्हारा बेटा भी नहीं, यहां तक कि तुम्हारी पत्नी भी नहीं। यदि तुम्हारे पास पैसा है तो वे सब परवाह करते हैं, वे सब इज्जत करते हैं, क्योंकि तुम्हारे पास पैसा है। यदि तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो तुम भिखारी बन जाओगे। उसका कहना है कि एक लंबे अनुभव के बाद पाया है कि संसार में केवल पैसा ही ऐसी चीज है जिस पर विश्वास किया जा सकता है, यह उसने उन लोगों से जिन पर वह विश्वास करता था बार-बार धोखा खाने के बाद सीखा है, और वह सोचता था कि वे उसे प्रेम करते हैं परंतु वे उसके साथ पैसे के लिए थे। परंतु, मैंने उससे कहा, मृत्यु के समय पैसा तुम्हारे साथ नहीं जाएगा। तुम भ्रम में हो सकते हो कि कम से कम पैसा तो तुम्हारे साथ है, परंतु जैसे ही तुम्हारी सांस रूक जाएगी पैसा तुम्हारे साथ नहीं होगा। तुमने कुछ कमाया है लेकिन यह यहां छूट जाएगा; तुम इसे मृत्यु के आगे नहीं ले जा सकते। तुम गहन अकेलेपन में गिर जाओगे जो पैसे के मुखौटे के पीछे छिपा है। ऐसे लोग हैं जो सत्ता के पीछे हैं, लेकिन कारण वही है: जब वे सत्ता में हैं तो बहुत से लोग उनके साथ हैं, लाखों लोग उनके प्रभुत्व में हैं। वे अकेले नहीं हैं। वे बहुत बडे राजनैतिक और धार्मिक नेता हैं। परंतु सत्ता परिवर्तित होती है। एक दिन यह तुम्हारे पास है, दूसरे दिन यह चली जाएगी, और अचानक सारा भ्रम गायब हो जाएगा। तुम इतने अकेले हो जाओगे जितना कोई नहीं होगा, क्योंकि दूसरे अकेले रहने के लिए आदी हो गए हैं। तुम आदी नहीं हो…तुम्हारा अकेलापन तुम्हें ज्यादा अकेलापन देता है। समाज नें व्यवस्था की है जिससे तुम अपना अकेलापन भूल सको। योजित शादियां एक कोशिश हैं कि तुम जान सको कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ है। साधारण से के लिए सभी धर्म तलाक का प्रतिरोध करते हैं उसका सरल सा कारण यह है कि यदि तलाक की अनुमति दी तो मूल कारण जिसके लिए शादी की खोज की थी, खत्म हो जाएगा। मूल कारण था तुम्हें एक साथी देना, आजीवन साथी। परंतु भले ही पत्नी तुम्हारे साथ या पति तुम्हारे साथ पूरे जीवन होगा, इसका यह मतलब नहीं है कि प्रेम एक जैसा रहेगा। वास्तव में, तुम्हें एक साथी देने के बजाय, वे तुम्हें ढोने के लिए एक बोझा देते हैं। तुम अकेले थे, पहले से ही परेशानी में, और अब तुम्हें एक और इंसान को साथ में ले कर चलना होगा जो खुद अकेला है। और इस जिंदगी में कोई आशा नहीं है, क्योंकि जब प्रेम गायब हो जाएगा तो तुम दोनों अकेले हो जाओगे, और दोनों को एक दूसरे को बर्दाश्त करना होगा। अब सवाल यह नहीं होगा कि तुम दोनों एक दूसरे को देख कर मुग्ध हो रहे हो; ज्यादा से ज्यादा तुम एक दूसरे को धैर्य से बर्दाश्त कर सकते हो। तुम्हारे अकेलेपन को शादी नाम की सामाजिक रणनीति बदल नहीं पायी है। धर्मों ने तुम्हें संगठित धार्मिक समाज का सदस्य बनाने की कोशिश की है जिससे कि तुम हमेशा भीड़ में रहो। तुम जानते हो कि कैथोलिक छ करोड़ हैं; तुम अकेले नहीं हो, छ करोड़ कैथोलिक तुम्हारे साथ हैं। जीसस क्राइस्ट (यीशु मसीह) तुम्हारे उद्धारकर्ता हैं। भगवान तुम्हारे साथ है। अकेले तुममें गलत संदेह उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन छ करोड़ लोग गलत नहीं हो सकते। थोड़ा सा सहारा…परंतु वह भी चला गया है क्योंकि करोड़ों लोग जो कैथोलिक नहीं हैं। जिन्होंने जीसस को सूली पर लटकाया था। जो लोग प्रभु में विश्वास नहीं रखते हैं और उनकी संख्या कैथोलिकों से कम नहीं है, ये कैथोलिकों से ज्यादा हैं। और कई धर्म हैं जिनकी अलग-अलग अवधारणाएं हैं। बुद्धिमान व्यक्ति के लिए संदेह न करना मुश्किल है। लाखों लोग हैं जो एक निश्चित विश्वसनीय प्रणाली को मानते हैं, परंतु तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं है कि वे तुम्हारे साथ हैं, कि तुम अकेले नहीं हो। भगवान एक उपकरण था, लेकिन सारे उपकरण बेकार हो चुके हैं। यह उपकरण था, जब कुछ नहीं होगा तो कम से कम भगवान तो तुम्हारे साथ है। वह हमेशा हर जगह तुम्हारे साथ है। आत्मा कि अंधेरी गहराई में, वह तुम्हारे साथ है, परेशान मत हो। बचकानी मानवता को इस अवधारणा से धोखा देने के लिए यह अच्छा था, परंतु तुम्हें इस अवधारणा से धोखा नहीं दिया जा सका। भगवान जो हमेशा से हर जगह है, तुम उसे नहीं देखते, तुम उससे बात नहीं कर सकते, तुम उसे छू नहीं सकते। तुम्हारे पास उसके अस्तित्व का कोई सबूत नहीं है, तुम्हारी इच्छा के अत्तिरिक्त/सिवाय की उसे होना चाहिए। परंतु तुम्हारी इच्छा किसी भी चीज़ का सुबूत नहीं है। भगवान बचकाने मन की इच्छा है। आदमी परिपक्व हो गया है, और भगवान निरर्थक बन गया है। परिकल्पना ने अपनी पकड़ खो दी है। मैं यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि जो भी प्रयास अकेलेपन से बचने के लिए किया गया था, बेकार हो चुका है, और बेकार हो जाएगा, क्योंकि यह जीवन की बुनियादी बातों के विरुद्ध है। जरूरत इसकी नहीं है कि कुछ ऐसा हो जिसमें तुम अपना अकेलापन भूल जाओ, जरूरत इसकी है कि तुम अपने एकाकीपन के प्रति सजग हो जाओ, जो कि वास्तविकता है। इसका एहसास करना और इसे महसूस करना बहुत ही सुंदर है, क्योंकि यह दूसरों से और भीड़ से तुम्हारी स्वतंत्रता है। यह तुम्हारे अकेलेपन के भय से स्वतंत्रता है। "अकेलापन"-- मात्र इस शब्द से तुम्हें तुरंत एक घाव की याद आ जाती है: इसे भरने के लिए कुछ चाहिए। एक खाली जगह है, और यह खाली जगह पीड़ा पहुंचाती है। "एकाकी" शब्द में किसी पीड़ा का वही एहसास नहीं है, न ही खालीपन है जिसे भरना है। एकाकी का सरल सा मतलब है सम्पूर्णता। तुम पूर्ण हो; तुम्हें पूर्ण करने के लिए किसी की जरूरत नहीं है। अपने अंतरतम केंद्र की खोज करो, जहां तुम हमेशा एकाकी हो, हमेशा एकाकी रहे हो। जीवन में, मृत्यु में जहां भी होओगे, अकेले होओगे। परंतु यह लबालब भरा है, यह खाली नहीं है, इतना लबालब भरा है और इतना पूर्ण है जीवंतता के रस, सुंदरता, आशीर्वाद से कि बहना शुरु कर दिया है, कि एक बार तुम एकाकीपन को चख लो तो हृदय में जो भी पीड़ा है वह गायब हो जाएगी। इसके बजाय, अत्यंत मधुर लय होगी जो शांति, खुशी और आनंद से सराबोर होगी। इसका अर्थ यह नहीं कि जो आदमी अपने एकाकीपन में केंद्रित है, स्वयं में पूर्ण है, वह दोस्त नहीं बना सकता, वास्तव में वही दोस्त बना सकता है, क्योंकि अब इसकी जरूरत नहीं रही है, यह सिर्फ सह्भागिता है। उसके पास इतना है कि वह सहभागिता कर सकता है। मित्रता दो प्रकार की हो सकती है। एक मित्रता वह होती है जिसमें तुम भिखारी होते हो, तुम अपने अकेलेपन के लिए दूसरों से मदद चाहते हो, और दूसरा भी भिखारी है; वह भी यही तुमसे चाहता है। और स्वभाविक रूप से दो भिखारी एक दूसरे की मदद नहीं कर सकते। जल्द ही वे देखेंगे कि भिखारी से भीख मांगने के कारण उनकी जरूरत दुगनी या कई गुना हो गयी है। अब एक भिखारी की जगह दो भिखारी हैं। और दुर्भाग्य से यदि उनके बच्चे हैं, तब एक पूरा समूह है जो मांग रहा है और किसी के पास देने के लिए कुछ नहीं है। तो सभी कुंठित और नाराज हैं, और सब महसूस कर रहे हैं कि उसे धोखा दिया जा रहा है, उसके साथ विश्वासघात किया जा रहा है। और वास्तव में न तो कोई धोखा दे रहा है और न कोई विश्वासघात कर रहा है, क्योंकि तुम्हारे पास है क्या? अन्य प्रकार की मित्रता, अन्य किस्म के प्रेम की बिल्कुल अलग गुणवत्ता होती है। यह जरूरत से नहीं उपजी है, बल्कि तुम्हारे पास इतना ज्यादा है कि तुम बांटना चाहते हो। नये किस्म का आनंद तुम्हारे अंतरतम में आ रहा है, बांटने का आनंद , जिसके प्रति तुम पहले जागरुक नहीं थे। तुम हमेशा मांगते रहते थे। जब तुम बांटते हो , तो वहां पकड़ का कोई सवाल ही नही है। तुम अस्तित्व के साथ बहते हो, तुम जिंदगी के बदलाव के साथ बहते हो, क्योंकि इससे कोई मतलब नहीं है कि तुम किसके साथ बांटते हो। कल भी वही इंसान हो सकता है, पूरी जिंदगी वही इंसान हो सकता है, या विभिन्न लोग भी हो सकते हैं। यह अनुबंध नहीं है, यह शादी नहीं है; यह बस प्रचुरता है जिसके कारण तुम देना चाहते हो। जो कोई भी तुम्हारे नज़दीक होता है, तुम दे देते हो। और देना बडा आनंदायक है। भीख मांगना इतनी बड़ी पीड़ा है। मांग कर यदि तुम कुछ पाते भी हो, तुम दयनीय ही रहोगे। यह चोट पहुंचाता है। यह तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, यह तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाता है। परंतु बांटना तुम्हें ज्यादा केंद्रित, ज्यादा पूर्ण, ज्यादा गौरवान्वित करता है परंतु ज्यादा अहंकारी नहीं, ज्यादा गौरवान्वित कि अस्तित्व तुम्हारे प्रति करुणापूर्ण है। यह अहंकार नहीं है; यह बिल्कुल अलग तथ्य है…एक पहचान कि अस्तित्व ने तुम्हें उस बात की अनुमति दी है जिसके लिए लाखों लोग कोशिश कर रहे हैं, लेकिन गलत दरवाजे पर। तुम सही दरवाजे पर हो। तुम्हें अपने आनंद पर और उस सब पर जो अस्तित्व ने तुम्हें दिया है, नाज़ है । भय गायब हो जाता है, अंधेरा गायब हो जाता है, दर्द गायब हो जाता है, दूसरे के संग-साथ के लिए इच्छा गायब हो जाती है। तुम एक व्यक्ति से प्रेम कर सकते हो, और यदि वह व्यक्ति किसी और से प्रेम करता है तो कोई ईर्ष्या नहीं है, क्योंकि तुम्हारा प्रेम अत्यधिक आनंद से उत्पन्न हुआ है। यह पकड़ नहीं है। तुम दूसरे व्यक्ति को कैद नहीं कर रहे थे। तुम परेशान नहीं थे कि दूसरा व्यक्ति तुम्हारे हाथों से छूट जाएगा, कि कोई और प्रेम संबंध बनाना शुरू कर देगा… जब तुम अपने आनंद को बांट रहे हो, तुम दूसरे के लिए कैद नहीं बनाते। तुम बस देते हो। यहां तक कि तुम आभार या धन्यवाद भी नहीं चाहते क्योंकि तुम कुछ पाने के लिए नहीं दे रहे, आभार के लिए भी नहीं। तुम दे रहे हो क्योंकि तुम इतने भरे हो कि तुम्हें तो देना ही है। इसलिए यदि कोई आभारी है, तुम उस व्यक्ति के लिए कृतज्ञ होगे जिसने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया था, जिसने तुम्हारा उपहार स्वीकार किया था। उसने तुम्हें भार मुक्त किया है, उसने तुम्हें अपने ऊपर प्रेम वर्षा करने की अनुमति दी। और जितना ज्यादा तुम बांटोगे, जितना ज्यादा तुम दोगे, उतना ज्यादा तुम्हारे पास होगा। इसलिए यह तुम्हें कंजूस नहीं बनाता, यह नया भय उत्पन्न नहीं करता कि मैं इसे खो दूंगा। सच तो यह है कि जितना ज्यादा तुम इसे खोते हो, उतना ही ज्यादा ताजा पानी स्रोतों से बहने लगता है जिनके बारे में तुम्हें पहले पता नहीं था। इसलिए मैं तुम्हें अकेलेपन के बारे में कुछ करने के लिए नहीं बताऊंगा। अपने एकाकीपन के लिए देखो। अकेलेपन को भूल जाओ, अंधेरे को भूल जाओ, दर्द को भूल जाओ। ये सभी एकाकीपन का अभाव हैं। एकाकीपन का अनुभव इन्हें तुरंत दूर कर देगा। और तरीका वही है: अपने मन को देखो, सजग रहो। ज्यादा से ज्यादा जागरूक हो जाओ, अंतत: तुम केवल अपने आप के प्रति जागरूक होओगे। यह वही बिंदु है जहां तुम अपने एकाकीपन के बारे में जागरूक हो जाओगे। तुम्हें आश्चर्य होगा कि विभिन्न धर्मों ने इस परंम अनुभुति को विभिन्न नाम दिए हैं। भारत के बाहर जन्मे तीन धर्मों ने इसे कोई नाम नहीं दिया क्योंकि वे कभी स्वयं की खोज में कभी इतनी दूर नहीं गए। वे बचकाने, अपरिपक्व, प्रभु से चिपके, प्रार्थनाओं से चिपके, मुक्तिदाता से चिपके रहे। तुम देख सकते हो मेरा क्या मतलब है: वे हमेशा निर्भर रहे हैं, कोई और उनकी रक्षा करेगा। वे अपरिपक्व हैं। यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम, ये बिल्कुल भी परिपक्व नहीं हैं और शायद यही कारण है कि उन्होंने संसार में ज्यादातर लोगों को प्रभावित किया है, क्योंकि संसार में ज्यादातर लोग अपरिपक्व हैं। उनके बीच कुछ आत्मीयता है। परंतु भारत में तीन धर्मों के पास इस परम अवस्था के तीन नाम हैं। और मुझे इसका स्मरण हुआ एकाकीपन शब्द की वजह से। जैनियों ने कैवल्य चुना, एकाकीपन, अंतरतम की परम स्थिति के रूप में। जैसे कि बौद्धों ने निर्वाण चुना, नो-सेल्फ/अनात्मा, और हिंदुओं ने मोक्ष चुना, स्वतंत्रता, जैनियों ने परम एकाकीपन को चुना। तीनों शब्द सुंदर हैं। वे एक ही वास्तविकता के तीन रूप हैं। तुम इसे मुक्ति या स्वतंत्रता कह सकते हो; तुम इसे एकाकीपन कह सकते हो; तुम इसे अनात्मा, रिक्तता कह सकते हो, बस विभिन्न संकेत उस परम अनुभव के लिए जिसके लिए कोई नाम पर्याप्त नहीं है। यदि किसी बात को तुम समस्या के रूप में देखते हो तो हमेशा देखो कि वह सकारात्मक है या नकारात्मक। यदि यह नकारात्मक है तो इसके साथ मत लडो; इसके बारे में बिल्कुल परेशान भी न हो। बस सकारात्मक पक्ष की ओर देखो, और तुम सही दरवाजे पर होगे। ज्यादातर लोग संसार में इसलिए चूकते है क्योंकि वे नकारात्मक दरवाजे के साथ लडना शुरु कर देते हैं। कोई दरवाजा नहीं है; केवल अंधकार है, अभाव है। और जितने ज्यादा वे लड़ते हैं, जितनी ज्यादा विफलता पाते हैं, ज्यादा निरुत्साहित, निराशावादी हो जाते हैं…और अंतत: वे खोजना शुरु कर देते हैं कि जीवन का कोई अर्थ नहीं है, कि यह बस यातना है। लेकिन उनकी गलती यह है कि उन्होंने गलत दरवाजे से प्रवेश किया। इससे पहले कि तुम समस्या का सामना करो, सिर्फ समस्या की ओर देखो: क्या यह किसी का अभाव है? और तुम्हारी सभी समस्याएं किसी का अभाव हैं। और एक बार जब तुमने ढूंढ़ लिया कि क्या अभाव है तब सकारात्मक के पीछे जाओ। और जिस पल तुमने सकारात्मक पा लिया, प्रकाश, अंधेरा खत्म हो जायेगा। ओशो, द पाथ ऑफ द मिस्टिक, |
हां, केवल करुणा ही स्वास्थ्य प्रदान करती है। क्योंकि मनुष्य में जो भी अस्वस्थ है वह प्रेम की कमी के कारण है। जो भी मनुष्य के साथ ग़लत है, कहीं न कहीं प्रेम से जुड़ा है। वह प्रेम नहीं कर पाया, या उसे प्रेम नहीं मिल पाया। वह स्वयं को बांट नहीं पाया। सारी व्यथा यह है। इस कारण भीतर बहुत सी ग्रंथियां बन गयीं हैं।
भीतर के यह घाव कई रास्तों से सतह पर आ जाते हैं:वह शारीरिक रोग बन सकते हैं, वह मानसिक रोग बन सकते हैं। लेकिन गहरे में कहीं मनुष्य प्रेम की कमी से पीड़ित है। जैसे देह के लिये भोजन की आवश्यकता है,ठीक वैसे ही आत्मा के लिये प्रेम की आवश्यकता है। देह भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकती और आत्मा प्रेम के बिना नहीं। वस्तुत: बिना प्रेम के आत्मा पैदा ही नहीं होती, इसके जीवित रहने का तो प्रश्न ही कहां।
तुम बस सोचते हो कि तुम्हारे पास आत्मा है;मृत्यु के भय के कारण तुम विश्वास करते हो कि तुम्हारे पास आत्मा है। लेकिन जब तक तुमने प्रेम नहीं किया तुम यह जान नहीं सकते। केवल प्रेम में ही व्यक्ति महसूस कर पाता है कि वह देह से कुछ अधिक है, मन से कुछ अधिक है।
इसी कारण मैं कहता हूं कि प्रेम स्वास्थ्य्प्रद है। करुणा क्या है? करुणा प्रेम का शुद्धतम रूप है। काम-वासना प्रेम का निम्नतम रूप है, करुणा प्रेम का उच्चतम रूप है। काम-वासना में संपर्क मूलत: शारीरिक होता है; करुणा में संपर्क मूलत: आध्यात्मिक होता है। प्रेम में करुणा और काम-वासना, दोनों का समावेश होता है, शारीरिक और आध्यात्मिक,दोनों का मिश्रण होता है। प्रेम काम-वासना और करुणा की मध्य में है।
करुणा को तुम प्रार्थना भी कह सकते हो। करुणा को तुम ध्यान भी कह सकते हो। ऊर्जा का उच्चतम रूप करुणा है। करुणा के लिये अंग्रेज़ी का शब्द कम्पैशन (Compassion) बहुत प्यारा है: इसका आधा पैशन-Passion ( काम-वासना) है। किसी तरह पैशन इतना शुद्ध हो गया है कि अब यह पैशन नहीं रहा। यह कम्पैशन हो गया है।
काम-वासना में तुम दूसरे का साधन की तरह इस्तेमाल करते हो, तुम दूसरे का वस्तु की तरह इस्तेमाल करते हो। यही कारण है कि यौन-संबंधों में तुम अपराध-भाव का अनुभव करते हो। इस अपराध भाव का धार्मिक शिक्षा से कुछ लेना देना नहीं; वह अपराध-भाव धार्मिक शिक्षा से अधिक गहरा है। जैसे यौन-संबंध जैसे हैं उनमें तुम अपराध-भाव का अनुभव करते हो। तुम अपराध- भाव का अनुभव करते हो क्योंकि तुम मनुष्य को वस्तु बना रहे हो,एक उपयोगी वस्तु बना रहे हो, जिसका इस्तेमाल किया और फेंक दिया।
यही कारण है कि काम-वासना में तुम एक तरह का बंधन भी महसूस करते हो; तुम भी एक वस्तु की तरह इस्तेमाल हो रहे हो। और जब तुम वस्तु बन जाते हो तो तुम्हारी स्वतंत्रता छिन जाती है, क्योंकि तुम्हारी स्वतंत्रता तभी होती है जब तुम व्यक्ति होते हो।तुम्हारे कमरे का फर्नीचर स्वतंत्र नहीं है। यदि तुम अपने कमरे पर ताला लगा कर छोड़ दो और वर्षों बाद आओ तो फर्नीचर उसी स्थान पर होगा, उसी तरह; यह अपने आप को नए ढंग से व्यवस्थित नहीं करेगा। इसकी कोई स्वतंत्रता नहीं है। लेकिन यदि तुम एक व्यक्ति को कमरे में छोड़ दो तो तुम उसे वैसा ही नहीं पाओगे। अगले दिन भी नहीं, अगले क्षण भी नहीं। तुम व्यक्ति को पुन: वैसा ही नहीं पाते।
बुजुर्ग हैराक्लाइटस कहता है:तुम एक ही नदी में दो बार प्रवेश नहीं कर सकते। तुम एक ही व्यक्ति को दोबारा नहीं मिल सकते। एक ही व्यक्ति को दोबारा मिलना असंभव है,क्योंकि मनुष्य एक नदी है,लगातार बहता हुआ। तुम कभी नहीं जानते कि क्या होने वाला है।भविष्य खुला रहता है।वस्तु के लिये भविष्य बंद रहता है। एक चट्टान चट्टान रहेगी,बस एक चट्टान।इसमें विकास की कोई क्षमता नहीं। यह बदल नहीं सकती,विकसित नहीं हो सकती। एक व्यक्ति वैसा ही कभी नहीं रहता। वह वापस लौट सकता है, आगे बढ़ सकता है; नरक जा सकता है, स्वर्ग जा सकता है लेकिन वही नहीं रह सकता।वह चलता रहता है, इस ओर या उस ओर।
जब तुम्हारे किसी के साथ यौन-संबध होते हैं तो तुमने उसे एक वस्तु बना दिया है।और उसे वस्तु बनाने में तुमने स्वयं को भी एक वस्तु बना लिया है, क्योंकि यह एक परस्पर समझौता है:मैं तुम्हें मुझे वस्तु बनाने की अनुमति देता हूं और तुम मुझे तुम्हें वस्तु बनाने की अनुमति दो। मैं तुम्हें मुझे इस्तेमाल करने की अनुमति देता हूं और तुम मुझे तुम्हें इस्तेमाल करने की। हम एक दूसरे को इस्तेमाल करते हैं। हम दोनों वस्तु बन गए हैं।
इसीलिये...दो प्रेमियों को देखें:जब वो व्यवस्थित नहीं हुए,रोमान्स अभी जिंदा है, हनीमून अभी समाप्त नहीं हुआ। आप पाएंगे कि दो व्यक्ति जीवंत हैं,विस्फोट के लिये तैयार, अनजान के विस्फोट के लिये तैयार। और फिर एक विवाहित जोड़े को देखें,पति और पत्नि को। आप दो मुर्दा चीज़ों को देखेंगे, दो कब्रें साथ-साथ,एक दूसरे को मुर्दा रखने में सहायक, एक दूसरे को बलात मुर्दा बनाते हुए।
काम-वासना उस ऊर्जा का निम्नतम रूप है X. यदि तुम धार्मिक हो तो इसे परमात्मा कहो; और यदि वैज्ञानिक हो तो इसे X कहो। यह ऊर्जा,X, प्रेम बन सकती है। जब यह प्रेम बन जाता है तो तुम दूसरे का सम्मान करना प्रारंभ कर देते हो। हां, कई बार तुम दूसरे व्यक्ति को इस्तेमाल करते हो, लेकिन इसके लिये तुम धन्यवादी होते हो। तुम एक वस्तु को कभी धन्यवाद नहीं कहते।जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो और उससे प्रेम करते हो तो तुम उसका धन्यवाद करते हो।
जब तुम अपनी पत्नी को प्रेम करते हो तो क्या तुमने कभी यह कहा है कि तुम्हारा धन्यवाद?नहीं,इसे तुम अपना अधिकार समझते हो।क्या तुम्हारी पत्नी ने कभी तुमसे कहा है कि तुम्हारा धन्यवाद?शायद,बहुत वर्ष पहले, तुम याद कर सकते हो जब तुम दुविधा में थे,प्रयास कर रहे थे,प्रणय निवेदन कर रहे थे,एक दूसरे को फुसला रहे थे।शायद।लेकिन एक बार तुम व्यवस्थित हुए तो क्या उसने तुम्हें किसी बात के लिये धन्यवाद कहा है?तुम उसके लिये इतना कुछ करते रहे हो, वह तुम्हारे लिये इतना कुछ करती रही है,तुम दोनों एक-दूसरे के लिये जी रहे हो लेकिन अनुग्रह खो गया है।
प्रेम में अनुग्रह होता है, एक गहरी कृतज्ञता होती है। तुम जानते हो कि दूसरा एक वस्तु नहीं है।तुम जानते हो कि दूसरे की एक गरिमा है,एक व्यक्तित्व है,एक आत्मा है, एक विशिष्टता है।प्रेम में तुम दूसरे को पूर्ण स्वतंत्रता देते हो। निश्चित ही तुम देते भी हो और लेते भी हो; यह एक लेन-देन का संबध है... लेकिन सम्मान के साथ।
काम-वासना में लेन-देन का संबंध है लेकिन बिना किसी सम्मान के।करुणा में तुम केवल देते हो।तुम्हारे मन में यह विचार किंचित मात्र नहीं होता कि तुमने कुछ बदले में लेना है; तुम केवल बांटते हो। ऐसा नहीं कि कुछ मिलता नहीं! बदले में करोड़ गुना मिलता है, लेकिन वो अकारण है,एक प्राकृतिक परिणाम है।उसके लिये कोई ललक नहीं है।
प्रेम में यदि तुम कुछ देते हो तो गहरे में कहीं अपेक्षा रहती है कि इसका फल मिले। और यदि फल नहीं मिलता तो तुम्हें शिकायत रहती है। तुम चाहे ऐसा कहो न लेकिन हजारों ढंगों से यह परिणाम निकाला जा सकता है कि तुम असंतुष्ट हो, कि तुम्हें लगता है धोखा दिया गया है। प्रेम एक प्रकार का सूक्ष्म सौदा है।
करुणा में तुम बस देते हो।प्रेम में तुम अनुग्रहीत होते हो क्योंकि दूसरे ने तुम्हें कुछ दिया है।करुणा में तुम अनुग्रहीत होते क्योंकि दूसरे ने तुमसे कुछ लिया है;तुम अनुग्रहीत होते हो क्योंकि दूसरे ने तुम्हारा तिरस्कार नहीं किया।तुम आये थे अपनी ऊर्जा बांटने, तुम आये थे कई तरह के फूलों को बांटने और दूसरे ने तुम्हें स्वीकृति दी,दूसरा लेने को राजी हुआ।तुम अनुग्रहीत हुए क्योंकि दूसरा लेने को राजी हुआ।
करुणा प्रेम का उच्चतम रूप है। बदले में बहुत कुछ मिलता है,मैं कहता हूं करोड़ गुना ।लेकिन वह प्रश्न नहीं है।तुम उसके लिये लालायित नहीं होते। अगर ऐसा नहीं होता तो कोई शिकायत नहीं। अगर ऐसा होता है तो तुम बस आश्चर्यचकित होते हो! अगर ऐसा होता है तो यह अविश्वसनीय है। यदि ऐसा नहीं होता तो कोई समस्या नहीं। तुमने अपना हृदय किसी को किसी सौदे के रूप में नहीं दिया था। तुम बरसते हो क्योंकि बस तुम्हारे पास है।तुम्हारे पास इतना है कि यदि तुम न बरसो तो यह तुम पर बोझ हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे पानी से भरे बादल को बरसना ही है। और अगली बार जब बादल बरस रहा हो तो चुपचाप देखना, तुम हमेशा सुनोगे कि जब बादल बरस चुका है और धरती ने इसे अपने में समा लिया है,तुम हमेशा सुनोगे कि बादल धरती से कह रहा है- तुम्हारा धन्यवाद।धरती ने बादल को बोझमुक्त होने में सहायता की है।
जब फूल खिल चुका है तो इसे अपनी सुगंध हवाओं से बांटनी ही है। यह प्राकृतिक है!फूल सुगंध से भरा है। यह क्या करे?यदि फूल सुगंध को अपने पास ही रखता है तो वह अत्यंत तनावग्रस्त हो जाएगा,गहन पीड़ा में।जीवन की अत्यधिक पीड़ा तब होती है जब तुम अभिव्यक्त नहीं कर सकते,प्रकट नहीं कर सकते,बांट नहीं सकते।सर्वाधिक गरीब व्यक्ति वह है जिसके पास बांटने को कुछ नहीं है,या जिसके पास बांटने को तो है पर उसने बांटने की क्षमता खो दी है, यह कला खो दी है कि कैसे बांटा जाए; तब व्यक्ति गरीब है।
कामुक व्यक्ति अत्यंत दरिद्र होता है। तुलना में प्रेमपूर्ण व्यक्ति अधिक धनी होता है। करुणावान व्यक्ति सर्वाधिक धनी होता है, वह सृष्टि के शिखर पर विराजमान है। उसकी कोई परिधि नहीं, कोई सीमा नहीं। वह बस देता है और अपनी रास्ते चला जाता है। वह तुम्हारे धन्यवाद की भी प्रतीक्षा नहीं करता। वह अत्यंत प्रेम से अपनी उर्जा को बांटता है। इसी को मैं स्वास्थ्य्प्रद कहता हूं।
बुद्ध अपने शिष्यों से कहा करते थे: प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान हो रहो, क्योंकि जब तुम ध्यान करते हो तो प्रेम बढ़ता है, हृदय प्रेम से भर जाता है। प्रत्येक ध्यान के बाद संपूर्ण संसार के लिये करुणा से भर जाओ ताकि तुम अपना प्रेम बांट सको और अपनी ऊर्जा को वातावरण में संप्रेषित कर सको और उस ऊर्जा का दूसरे इस्तेमाल कर सकें।
मैं भी तुमसे कहना चाहूंगा: प्रत्येक ध्यान के बाद जब तुम उत्सव मना रहे हो तो करुणावान हो रहो। ऐसा महसूस करो कि तुम्हारी ऊर्जा लोगों तक वैसे पहुंचे जैसे उन्हें जरूरत है। तुम बस इसे संप्रेषित कर दो! तुम भारमुक्त हो जाओगे, तुम अत्यंत विश्रांत महसूस करोगे, तुम अत्यंत शांत और स्थिर अनुभव करोगे और जो तरंगे तुमने संप्रेषित की हैं बहुत लोगों की सहायता करेंगी।हमेशा अपना ध्यान करुणा से समाप्त करो।
और करुणा बेशर्त होती है। तुम केवल उन लोगों के लिये ही करुणावान नहीं हो सकते जो तुम्हारे प्रति मैत्रीपूर्ण हैं, जो तुमसे संबंधित हैं।करुणा में सब सम्मिलित हैं...आंतरिक रूप में सब सम्मिलित हैं।तो यदि तुम अपने पड़ोसी के लिये करुणावान नहीं हो सकते तो ध्यान के बारे में सब भूल जाओ, क्योंकि इसका व्यक्ति विशेष से कुछ लेना-देना नहीं। इसका तुम्हारी आंतरिक अवस्था से कुछ लेना-देना नहीं। करुणा हो जाओ! बेशर्त,बिना किसी के प्रति,किसी व्यक्ति विशेष के लिये नहीं।तब तुम इस दु:ख भरे संसार के लिये एक स्वास्थ्य प्रदान करने वाली शक्ति बन जाते हो।