मृणाल सेन भारतीय फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक हैं। इनकी
अधिकतर फिल्में बांग्ला भाषा में हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे वह
कम्युनिस्ट पार्टी के सांस्कृतिक विभाग से जुड़ गए। यद्यपि वह कभी इस
पार्टी के सदस्य नहीं रहे पर इप्टा से जुड़े होने के कारण वह अनेक समान
विचारों वाले सांस्कृतिक रुचि के लोगों के परिचय में आ गए संयोग से एक दिन
फिल्म के सौंदर्यशास्त्र पर आधारित एक पुस्तक उनके हाथ लग गई। जिसके कारण
उनकी रुचि फिल्मों की ओर बढ़ी। इसके बावजूद उनका रुझान बुद्धिजीवी रहा और
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी के कारण कलकत्ता से दूर होना पड़ा। यह बहुत
ज्यादा समय तक नहीं चला। वे वापस आए और कलकत्ता फिल्म स्टूडियो में ध्वनि
टेक्नीशियन के पद पर कार्य करने लगे जो आगे चलकर फिल्म जगत में उनके प्रवेश
का कारण बना। फिल्मों में जीवन के यथार्थ को रचने से जुड़े और पढऩे के
शौकीन मृणाल सेन ने फिल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया और सिनेमा पर
न्यूज ऑन सिनेमा(1977) तथा सिनेमा, आधुनिकता (1992)पुस्तकें भी प्रकाशित
हुईं।
1955 में मृणाल सेन ने अपनी पहली फीचर फिल्म रातभोर बनाई। उनकी अगली फिल्म नील आकाशेर नीचे ने उनको स्थानीय पहचान दी और उनकी तीसरी फिल्म बाइशे श्रावण ने उनको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई। पांच और फिल्में बनाने के बाद मृणाल सेन ने भारत सरकार की छोटी सी सहायता राशि से भुवन शोम बनाई, जिसने उनको बड़े फिल्मकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया और उनको राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की। भुवन शोम ने भारतीय फिल्म जगत में क्रांति ला दी और कम बजट की यथार्थपरक फिल्मों का नया सिनेमा या समांतर सिनेमा नाम से एक नया युग शुरू हुआ।
इसके उपरांत उन्होंने जो भी फिल्में बनाईं वह राजनीति से प्रेरित थीं जिसके कारण वह मार्क्सवादी कलाकार के रूप में जाने गए। वह समय पूरे भारत में राजनीतिक उतार चढ़ाव का समय था। विशेषकर कलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित थे, जिसने नक्सलवादी विचारधारा को जन्म दिया। उस समय लगातार कई ऐसी फिल्में आईं जिसमें उन्होंने मध्यमवर्गीय समाज में पनपते असंतोष को आवाज दी। यह निर्विवाद रूप से उनका सबसे रचनात्मक समय था।
पूरा लेख पढ़ने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर चटका लगाइए -
http://www.samayantar.com/mrinal-sen-a-different-personality/
1955 में मृणाल सेन ने अपनी पहली फीचर फिल्म रातभोर बनाई। उनकी अगली फिल्म नील आकाशेर नीचे ने उनको स्थानीय पहचान दी और उनकी तीसरी फिल्म बाइशे श्रावण ने उनको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई। पांच और फिल्में बनाने के बाद मृणाल सेन ने भारत सरकार की छोटी सी सहायता राशि से भुवन शोम बनाई, जिसने उनको बड़े फिल्मकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया और उनको राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की। भुवन शोम ने भारतीय फिल्म जगत में क्रांति ला दी और कम बजट की यथार्थपरक फिल्मों का नया सिनेमा या समांतर सिनेमा नाम से एक नया युग शुरू हुआ।
इसके उपरांत उन्होंने जो भी फिल्में बनाईं वह राजनीति से प्रेरित थीं जिसके कारण वह मार्क्सवादी कलाकार के रूप में जाने गए। वह समय पूरे भारत में राजनीतिक उतार चढ़ाव का समय था। विशेषकर कलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित थे, जिसने नक्सलवादी विचारधारा को जन्म दिया। उस समय लगातार कई ऐसी फिल्में आईं जिसमें उन्होंने मध्यमवर्गीय समाज में पनपते असंतोष को आवाज दी। यह निर्विवाद रूप से उनका सबसे रचनात्मक समय था।
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